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________________ ४७. अंक १] प्रो. ल्युमन अने आवश्यकसूत्र ६ ठी गाथामां क्रमथी ए अग्यारेना मनमा जे जे बाबतनो संशय हतो तनी नोंध छे अने ते आ प्रमाणे छ --- जीवे' कम्मे तज्जीव' भूय तारिसय५ बन्ध-मोक्खे य । देवा नेरइया वा पुण्णे परलोग' निव्वाणे' ॥ ६ (५९६) ७. पहेला पांचे गणधरोने ५००-५०० शिष्यो हता; ६-७ ने ३५०-३५० अने छेल्ला ४ ने ३००-३०० शिष्यो हता. . महावीर दरेकने नाम गोत्र पूर्वक बोलावे छे अने पछी तेना मनना संशयतुं नाम लई, 'तूं वेदना पदोनो अर्थ जाणतो नथी, तनो अर्थ आ प्रमाणे छ' एम एक ज प्रकारनो जवाब आपे छ. गाथावार गणधरोनो उल्लेख आ प्रमाणे पहेलो गणधर, जीव विषयक संशय. २५. बीजो में कर्म विषयक ३१. त्रीजो तज्जीव तच्छरीर वि. ,, ३५. चोथो पश्च भूत वि० पांचमी सदृशोत्पत्ति वि० ४३. छठ्ठो बन्ध मोक्ष वि० सातमा देवसृष्टि वि० ५१. आठमो नरकसृष्टि वि० नवमो पुण्य विषयक ५९. दशमो परलोक वि० ६३. अग्यारमो , निर्वाण वि० आ अग्यारे गणधरोना मनना संशयनो महावीरे जे खुलासो कयों हतो तेनो उल्लेख मूळ नियुक्तिमा करवामां आव्यो नथी. निन्हवीनी हकीकतनी पेठे ज ए हकीकत पण निर्णय वगर ज आपवामां आवली छ. चूर्णिमां फक्त पहेला गणधरना संशयनो खुलासो करवानो थोडोक प्रयत्न करवामां आव्यो छे. पण जिनभद्र आ बाबतनो घणो उत्तम विस्तार करे छे. ए विषय माटे तेमणे ४०० उपरांत गाथाओ लखी छे अने तेना विवरणमा घणी विशेष वातो आपी छे. हरिभद्रसूरि आ विवरणमाथी घणांक अवतरणो पोतानी टीकामां ले छे अने एज अवतरणो विशेषावश्यक भाष्यमांना गणधरवादनी टीकाओना आधारभूत बने छे. वळी हरिभद्रनी टीका उपरथी किश्चिद्गणधरवाद नामनो पण एक प्रन्थ लखायो छे, जेमा केटलोक वधारे विस्तार करवामां आवेलो होई वदनां घणां खरां अवतरणो उपरांत छट्ठी अने ते पछी आवती गाथामांनी हकीकतनुं पण निरूपण करेलुं छे. आनी श्लोक संख्या लगभग २५० जेटली छे अने पूनाना पुस्तकभंडारमा नं० १६, २९१ वाळी प्रतना २० थी:२३ मा सुधीना पानाओमां ए लखेलो छे.. दशवकालिकनी लधुवृत्तिमां पण संक्षेपथी आ विषय चर्चेलो छे. ___ आ विषयने लगता जे केटलांक वैदिक अने दार्शनिक अवतरणो जिनभद्र आपेछे अने तेमनो जे अर्थ जन मतानुसार करे छे ते जाणवां जेवां छे. आमांनां घणां खरां अवतरणो तो तेमणे फक्त Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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