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________________ ८४ जैन साहित्य संशोधक. [ खंड २ पोतानी टीकामां ज आपला छ; पण ते स्वोपज्ञ टीका उपलब्ध नथी, तेथी हरिभद्र, शीलांक अने हेमचन्द्र के जमणे ए स्वोपज्ञ टीकानो पोतानी टीकाओमां उपयोग कर्यो छे-तेमणे ए अवतरणो लीलां होवाथी आपणे ए टीकाओमांथी ज ते लेवानां छे. भाष्यना मूळमां ज जे अवतरणो आपलां छे ते खास काळा अक्षरोमां आपवामां आव्यां छे. बाकीनां कया टीकाकारे कयां अवतरणो लांछे ते जुदी जुदी रीते बताववामां आव्यां छे. ए अवतरणो कया प्रन्थोमाथी लेवामां आवेलां छे तेनो कांई उल्लेख टीकाकारो करता नथी. तेथी जेकबना उपनिषद्वाक्यकोष अने बीजां तेवां वेद संबंधी पुस्तको उपरथी घणांकनां स्थळ खोळी काढवानो प्रयत्न कर्यो छे. ए तो चोकस छे के जे अवतरण जिनभद्रे लीधां छे ते घणां प्रमाणभूत छे अने तेमना वखतना ब्राह्मणो वादविवादमां ए वाक्यानी खूब चर्चा करता होवा जोईए. ब्राह्मणोनां दर्शनशास्त्र मां परस्पर विरुद्ध विचार दर्शावना ए वाक्यो उपरथी दरेक गणधरनो संशय उभो करवामां आव्यो छे. प्रसिद्ध उपनिषदोना मूळ पाठो साथै सरखावतां ए वाक्योमा जे केटलीक भूलो नजरे पडे छे तेनुं कारण बिनकाळजीपूर्वक एओनो उपयोग करवामां आवेलो होवु जोईए. * (दाहुर्नास्तिकः) * ×२, ५ (१५५३). 193 एतावानेव पुरुषोऽयं यावानिन्द्रियगोचरः । भद्रे, वृकपदं पश्य यद् वदन्ति बहुश्रुताः ।। I fपब स्वाद व साधु शोभने यदतीतं बरगात्रि तन्न ते । न हि भीरु गतं निवर्तते, समुदयमात्रमिदं कडेवरम् ॥ ( भट्टोऽप्याह ) # x आ अंक ते प्रो० ल्युमने पोताना मूळ निबन्धमा विशेषावश्यकभाष्यना जे ५ विभागो पाडवा छे तेना सूचक छे. एमा पहलो अंक प्रकरणने अने बीजो गाथानंबरने सूचवे छे. आ पछी जे कौंसमा अकडा आपल छे ते काशीनी यशोविजय जैनग्रन्थमाळामां प्रकट थएल सटीक विशेषावश्यकभाष्यमांनी चालू गाथासंख्या सूचवे छे. मुद्रित प्रथम १५४८ मी गाथा ज्यां पूरी थाय छे त्यां उक्त प्रो० ना वर्गीकरण प्रमाणे प्रथम विभाग पूरो थाय छे अने १५४९ मी गाथाथी बीजो विभाग शरू थाय छे ते २०२४ मी गाथाए पूरो थाय छे. ए विभागमां गणधरबाद नामने विषय आवे छे अने तेनी कुल ४७६ गाथा छे. * - ( ) आवा गोळ कसम आपला पाठो आवश्यकसूत्रनी हारिभद्री टीकामा आपवामां आवेला नथी; तेज [] आवा चौखुणा कौंसमां आपेला पाठो विशेषावश्यक भाष्यनी शीलांकाचार्यकृत टीकामा आपेला नथी; एम समजवु. + आ अंको आवश्यकनी हारिभद्रो टीकामां दरेक गणधरना माटे जे शंका-समाधानात्मक अवतरणो आपवामा आवेला छे तेनो क्रमनिर्देश सूचवे छे. एमांनो मोटो अक्षर ए गणधरनी संख्या बतावे छे अने तेनी आगळ जे नानो अक्षर छे ते अवतरणनी संख्या जणावे छे. I आ चिन्हवाळा अवतरणो फक्त आवश्यक चूर्णिमां ज मळी आवे छे. * आ बने श्लोको हरिभद्रकृत षड्दर्शनसमुच्चयना छेवटना लोकायत प्रकरणमां, श्लोक ८१-८२, ( मुद्रित पृ० ३०१, ३०४, कलकत्ता ) त्यां बीजा श्लोकनो प्रथम पाद ' पिब खाद च चारुलोचने ' आ प्रमाणे छे. २. शीलांकाचार्यनी टीकामां 'यथाहु:' पाठ छे. ३. शी. टी. 'एके.' ४. चूर्णिमां 'एके आहु:' एटलो ज पाठ छे. ५. विशेषावश्यकनी हेमचंद्रकृत टीकानी केटलकि प्रतोमां आना ठेकाणे ' लोकोऽयं ' पाठ छे. ६. चू० शी० ह. हे० नी केटलीक प्रतोमा ' वदन्त्यबहुश्रुताः ' पण पाठ छे. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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