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________________ ८२ ] जैन साहित्य संशोधक [ खंड २ ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टीट्युटमां सुरक्षित छ, तेना अतिजीर्ण शीर्णथएलां केटलांए पानाना फोटोग्राफस् आप्या छे. ' प्रो० ल्युमनना अथाग परिश्रम भरेला ए आखा निबन्धनो अविकल गुजराती अनुवाद कराववानो अमारो विचार चाली रह्यो छे पण कमनसीबे हजी अमने ए निबन्धनी पूरी नकल मी नथी. पूनाना भांडारकर ओ० री० इन्स्टीटयूटमांना सर भांडारकरना पुस्तकसंग्रहमांथी फक्त एना कटेला प्रुफसीटस् ज अमने जोवा मळ्या छे, जे प्रो०ल्यूमने डॉ०भांडारकरने, ए निबन्ध छपाती लखते, पूनानी प्रतो साथ सरखावी जोवा माटे मोकल्या होय एस देखाय छे. ए संबन्धमां खुद प्रो० ल्युमनसाथै ज अमारो पत्रव्यवहार चाले छे जेनो सविस्तर खुलासो मळतां भाषांतरनी व्यवस्था करवामां आवशे. ते दरम्यान, जैन साहित्य संशोधकना वाचकोने ए अमूल्य निबन्धनो कांइक परिचय थाय तेटला माटे मजकुर प्रोफेसरे ए निबन्धमा आवश्यक निर्युक्ति अने विशेषावश्यक भाध्यमां आवता गणधरवाद नामे विषयना उपर जे एक प्रकरण लख्यूं छे तेनो अनुवाद आपए छीए. ए अनुवाद कार्यमां, मि. आर. डी. वाडेकर, बी. ए. नामना सज्जने जर्मन भाषा समजाववा माटे जे सहायता अपीछे तेनी आभार साथै अमारे अहीं खास नोंध लेवी जोईए. विद्य वैशाख, संवत् १९७९ विशेषावश्यकभाष्य अने तेनी टीकामां मळी आवतां वैदिक अने दार्शनिक अवतरणो. मुनि जिन विजय - केशवलाल, मे. मोदी. आवश्यक नियुक्तिना छठ्ठा भागनी १ थी ६४ मी सुधीनी गाथाओमां गणधरवाद नामे विषय आवेलो छे. एमां केवी रीते महावीरे ११ ब्राह्मणोना तत्त्वज्ञान विषयक संशय दूर करी, शिष्यो साथ तेमने पोताना शिष्यो बनाव्या एनं हूंं अने एक ज प्रकारनुं वर्णन आपेलुं छे. ए अग्यारे ब्राह्मणो महावीरना मुख्य शिष्य होई गणधरो कहेवाय छे. शरुआतमां २ थी ७ सुधी गाथामा संक्षेपमां गणधरोनो ड्रंक परिचय अने संशयात्मक विषयनी नोंध आपी छे अने पछी ८ थी ६४ सुधी गाथामां तेनो ज विस्तार आपेलो छे. गाथावार हकीकत आ प्रमाणे: २. उन्नत अने विशालकुमां उत्पन्न थएला अभ्यारे ब्राह्मण पावानामक स्थानमां सोमिल ब्राह्मणे आरंभेला यज्ञपाटकमां आवेला हता. ३- ४. तेमनां नाम ---- १ इन्दभूइ २ अग्गिभूइ ३ वाउभूइ ४ वियत्त ६ मण्डिय ७ मोरियपुत्त ८ अकंपिय ९ अयलभाय १० मेयज्ज ११ पहास ५ सुहम्म ५. आ अग्यारेमांथी फक्त एक सुधर्म ( ५ मा गणधर ) नीज शिष्य परंपरा आगळ चाली. बाकीना कोईनो शिष्य समुदाय रह्यो नहीं. १ ए आखा पुस्तकना अमे पण फोटोग्राफसू पडाव्या छे. खरेखर ए प्रति एक दर्शनीय प्रति छे भने एना ए फोटोग्राफसूनी नकल दरेक पुस्तक भंडारमा मुकवामां आवे एबी आमारी खास भळामण छे. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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