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________________ अंक १j महाकवि पुष्पदन्त और उनका महापुराण कयउं कन्वु भत्तिए परमत्थे, छसय छुडोत्तर कयसामत्थे ॥ २६ ॥ कोहण संवच्छ्रे आसाढए, दहमए दियहे चंदरुहरूढए । पत्ता। सिरि अरुहहो भरहहो बहुगुणहो काकुलतिलए भासिउ । सुपहाणु पुराणु तिसहिहिमि पुरिसहं चरिउ समासिउ ॥ २७ ॥ इय महापुराणे तिसहिमहापुरिसगुणालंकारे महाभत्वभरहाणुमण्णिए महाकापुप्फयंत विरहए महाकव्वे दुइत्तरसइमो परिच्छेश्रो समस्तो ॥ १०२॥ (प्राचीन पत्र ) संवत् १६३० वर्षे भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमातिथौ कविधासरे उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रे नेमिनाथचैत्यालये श्रीमूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्रीपद्मनंदिदेवास्तत्प? भ० श्रीशु [भचन्द्रदेवास्त] पट्टे भ० श्रीजिनचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीप्रभाचन्द्रदेवास्तत्सिय मं० श्रीध...............स्तत्सिष्य मं० श्री ललितकीर्ति देवास्तशिष्य मं० श्री चंद्रकीर्ति देवास्तद............( खंडेल) वालान्वये सावडा गोत्रे सा० धेल्हा तद्भार्या घिल्हसरिस्तत्पुत्रौ द्वौ प्र०सा...............छायलदे तत्पुत्रः सा० वीरम तद्भार्या वीरमदे तत्पुत्रः सा० नाथू तद्भार्या...............तीय जिनपूजापुरंदर सा० श्री धणराज तद्भार्य द्वे प्र० सती सीताक............... परिशिष्ट नं० ४ ( महापुराण के परिच्छेदों के प्रारंभिक पद्य ) १ आदित्योदयपर्वताद्गुरुतराञ्चन्द्रार्कचूडामणेराहेमाचलतः कुशेशनिलयादासेतुबन्धाद्दढात् । आपातालतलादहीन्द्रभवनादास्वर्गमार्ग गता कीर्तिर्यस्य न वेत्ति भद्र भरतस्याभाति खण्डस्य च ॥ ३ बलिजीमूतदधीचिषु सर्वेषु स्वर्गतामुपगतेषु । संप्रत्यनन्यगतिकस्त्यागगुणो भरतमावसति ।। ४ आश्रयवसेन भवति प्रायः सर्वस्य वस्तुनोऽतिशयः। . भरताश्रयेण संप्रति पश्य गुणा मुख्यतां प्राप्ताः॥ ५ भूलीलां त्यज मुंच संगतकुचद्वंद्वादिगर्धाक्षमा, मा त्वं दर्शय चारुमध्यलतिकां तन्वंगि कामाहता। मुग्धे श्रीमदनिंद्यखंडसुकवेधुर्गुणैरुन्नतः । वामप्येष परांगनां न भरतः शौचांबुधेवाछति ॥ ६ श्रीर्वाग्देव्यै कुप्यति वाग्देवी द्वेष्टि संततं लक्ष्म्यै । भरतमनुगम्य सांप्रतमनयोरात्यांतकं प्रेम ॥ ७ इंहो भद्र प्रचंडावनिपतिभवने त्यागसंख्यातकर्ता कोयं श्यामप्रधानं प्रवरकारेकराकारबाहुः प्रसन्नः। धन्यः प्रालयापण्डोपमधवलयशो धौतधात्रीतलांतः ख्यातो बन्धुः कवीनां भरत इति कथं पांथ जानासि नो त्वं ॥ धो गया है और अभिमानमेरु जिन का चिन्ह या उपनाम है, उन पुष्पदन्त कवि ने यह काव्य भक्ति के वश हो कर ६०६ के क्रोधन नामक संवत्सर में आसाठ के दशवें दिन सोमवार को बनाया ॥ २५.०६ ॥ कविकुलातलक ने पुराणप्रसिद्ध त्रेसष्ट पुरुषों का चरित संक्षेप से वर्णन किया ॥ २७ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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