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________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी कल्पसूत्रनी प्रस्तावना. प्राचीन ए हवे हुं कल्पसत्रना लोकविश्रुत लेखक भद्रबाहुना मदद लीधी छे तेमने कालक्रमानुसार गोठववा संबंधमां जैनो शुं कहे छ ते शिएक उपर आवं छं. जोईए. अने तेथी ते सर्वेना हुं नीचे प्रमाणे त्रण आ स्थविरना संबंधमां जे थोडा घणी सत्य हकि- वर्गो पाडु छं. पहेला वर्गमां कल्पसूत्रमा आपेली बे कतो छ ते पण अनौतहासिक दंतकथाओ साथे स्थविरावलीओ, तथा आवश्यक सूत्र अने नन्दीसूत्रनी एटली बधी भेळसेळ थई गई छ के जेथी तेमने शरुआतमां आपेली स्थविरावली मूकुं छु. बीजा तारवी काढवानुं काम अशक्य थई पर्चे छे. तेम वर्गमां, धर्मघोषना ऋषिमण्डलसूत्रने मूकं छ, आ छतां पण भद्रबाहु-संबंधी दंतकथाओन एतिहासि- बधा ग्रंथो वो नि. ९८० पछीना छे. अनाथी क मूळ शोधी काढवा माटे प्रयत्न करवानी आव- घणां सैकाओ पछी रचाएलुं हेमचंद्रन परिशिष्ट पर्व श्यकता छे. आ कार्य माटे में जे पुरावाओनी पण बीजा विभागमा अंतर्भूत थाय छे. त्रीजा कर तेथी तेमना प्रयत्नो निष्फळ निवड्या छ; एटलंज नहीं मां कल्पसूत्रनी वधारे अर्वाचीन टीकाओमा आवती. पण कालगणना संबंधी शोधमा त मोटा विघ्नरूप थई पड्या कथाओ, पद्ममंदिरगणि रचित ऋषिमण्डलसूत्र वृत्त. छे. प्रो. वेबरे, बी. नि. ९८० मां ध्रुवसेन राजानी आगळ (आ वत्ति संवत १५१३मां जेसलमेरमा समाप्त थए-. कल्पसूत्र वांचवामां आव्यु हतुं, ते हकिकत, अने शिलादि. त्य जे वी. नि. पछी ९४७ मां राज्य क तो हतो तेवी दंत- ली छ.) आदि बीजा ग्रंथो मकवामां आव्या छे. कथावाळी हकिकत, ए बन्नेनो भेळसेळ करी, तेना उपरथी स्थविरावलीनी अनुसार महावीर पछी भद्रबाहु महावीर निर्वाणनी तारीख ई. स. पूर्वे ३०९ नक्की करी छे. छठा स्थविर छे. तेमना गोत्रनं नाम 'प्राचीन' छ, प्रो. वेबरनी गणनानी पायाभूत आ बन्ने तारीखो जो खरी होय-जो के ते विषयमा मने तो गंभीर शंकाओ छे-तो पण उपर जणावेली नोंधोमां त्रण ध्रुवसेनोमांनो कयो ध्रुवसेन अने राएलो छ कारण के आ नामनं गोत्र भारतवर्षना छ शिलादित्योमांनो कयो शिलादित्य लेवानो छे, ते नक्की बीजा कोई ग्रंथमां जोवामां आवतुं नथी. भद्रबाहु करवू अशक्य छे. आ अनिश्चय उपरांत, वलभीवंशनी कालगगना उपर प्रो. वेबरे पोतानी गणत्री उभी करीने यशाभद्रना शिप्य हता, अने कल्पसूत्रनी विस्तत तेनोज हजी तो निणय थयो नथी. प्रो. वेबरना सिद्धन्तनी स्थविरावलीमां बताव्या प्रमाणे तेमने ( भद्रबाहुने ) (Ind. Alt. IV.p.762 sqq.) टीका करती प्रो. लेसननी गोदास, आग्निदत्त, जनदत्त, अने सोमदत्त नामना दलीलो पण तेना जेवाज अनिष्कंटक पाया उपर उभी थएली। होवाधी तेना संबंधमां पण वधारे विवेचन करवानी जरूर चार विप्यो हता. आमांना पहेलाए गोदास नामे नथी. शत्रंजयमाहात्म्य जेने डॉ. बुहलर 'बारमा अगर गण स्थाप्यो हता. चौदमा सैकाना कोई एक यतिनो कंगाल कूट लेख' कहे छे ऋषिमण्डलसूत्रमा भद्रबाहुनी एकज गाथा वड (Three new Edicts of Acoka, p. 21. note) तेमां पण विक्रम पहेलां ४७० मा वर्षमां महावीर निर्वाण . स्तुति करेली छे, पण तेमना उत्तराधिकारी स्थूलभपाम्यां एवी चालती आवती हकिकत आपेली छे. पण वेबरे द्रनी स्तुति वीस-गाथाओमां करवामां आवी छे. अगर लेसने आ अगत्यना कथन उपर कोई पण लक्ष्य आप्यु भद्रबाहनी स्तति-गाथा नीच प्रमाण छ. नथी. तेनु कारण कदाचित तेमना वखतमां जा धर्मोना मुकाबलामां जैन धर्म ए एक अर्वाचीनज धर्म छे, एम जाणे दसकप्पव्ववहारा के एक सिद्धान्त मनाई गयो होय तेम लागे छे. परंतु आ निज्जूढा जेण नवम-पुवाओ। दुराग्रह छेल्लां वीस वर्षोमां, जे विशाल प्रमाणमां जैन सा वंदामि भदबाहुं हित्य आपणने मळ्यं छे, तेनी आगळ, हवे टकी शके तेम नथी. डॉ० बुहलरनो आपणे उपकार मानवो जोईए के तमपच्छिम-सयलसुयनाणि ॥ जेमणे समग्र जैन साहित्य युरोपीय विद्वानोनी आगळ लावी _ 'जेमणे नवमा पूर्वमांथी दशकल्पो अने व्यवहार मूक्यं छे: अने तेम करी अपूर्ण अने शंकाशल मळोमांथी जैनधर्मसंबंधी हकिकतो मेळववाना संकटमाथी आपणने मुक्त ( सूत्र ) उद्धृत की, एवा अंतिम श्रुतेकवली भद्रकर्या छे. बाहुने हुं वंदन करुं छु. 'अपच्छिम' ने अनुवाद 'छेल्लू Aho I Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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