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________________ १२ जैन साहित्य संशोधक. [ भाग १ शकाय छे. परंतु आ रीतनो अर्थ केटलेक अशे श्रमसाधित होवाथी मने एम मानवु ठीक लागे छे के प्राचीनतर हकिकत अनुसार भद्रबाहुज हेला श्रुतकेवली हता; पण पाछथी, स्थूलभद्र – के जेमना विषयमा घणी दंतकथाओ लोकमां प्रसिद्ध छे --ते पण तेवी प्रकारना पदवीधर स्थविरोनी गणनामां गुणावा लाग्या हता. नहीं ' एम पण करवो होय तो थाय, परंतु तेनो सामान्य अर्थ ' तद्दन छेलं ' एम थतो होवाथी मे मारा भाषान्तरमां तेम कर्तुं छे. छतां पण सामान्य परंपरानुसार स्थूलभद्र चौदपूर्वधारी मनाता होवाथी, भद्रबाहु उपाय ( छेल्लानी पहेला ) श्रुतकवली गणाय छे. स्थूलभद्रथी ते वज्रस्वामी सुधीना स्थविरो दश पूर्वोना धारक हता. अने तेटला मोटे तेओ दशपूर्वी कहेवाय हे. वज्रस्वामी पछी पूननु ज्ञान धर्मघोषनी गाथाना पूर्वार्ध उपरथी मालुम पडे तन लुप्त थयुं हतुं.–जुओ, हेमचंद्र विरचित, छे के भद्रबाहुए नवमा पूर्वमाथी दशकल्पो अने अभिधान चिन्तामणि, श्लोक. ३३ -- - ३४. हेमचंद्र व्यवहारसूत्र उद्धृत कर्यो हतां कल्पसूत्रनी घणी परिशिष्ट पर्वना नवमा सर्गमां, केवी रीते रथूलभद्र टीकाओना उपोद्वातमां आ दशकल्पा संबंधी निर्देश साथे छेल्लां चार पूर्वो विच्छिन्न थयां ते संबंधमां नीचे थलो जोवामां आवे छे. ( Stevenson, Kalpt= प्रमाणे वर्णन आपे छे:- पाटलीपुत्रना संघे ११ sutra. p. 3 sqq.) ते उपरथी दशकल्पनी मतलब अंगो एकत्र करी, दृष्टिवाद नामना बारमा अंगने मुख्यत्वे करीने कल्पसूत्रज हशे व्यवहार सूत्र ते प्राप्त करवा माटे ४९९ साधुओ सथे स्थूलभद्रने जैन आगमोमां गणाता छेदोमांनु एक छेद छे. ऋषिभद्रबाहुनी पासे, जेओ ते बखते नेपालमा रहेता हता, मण्डलसूत्रनी वृत्तिमां भद्रबाहुस्वामीनी कृतिओनी त्यां मोकल्या. भद्रबाहुए ते समये महाप्राणव्रत ' नीचे प्रमाणे एक मोटी यादी आपी छे:अंगीकार करेलुं होवाथी पोताना ए शिष्योने दशवैकालिकस्याचाराङ्गसूत्रकृताङ्गयोः । घणोज थोडो थोडो पाठ आपी शकता हता. तेथी उत्तराध्ययन सूर्यप्रज्ञप्त्योः कलकस्यच ॥ करीने केटलाक वखत पछी, स्थूलभद्र सिवाय बीजा व्यवहारर्षिभाषितावश्यकानामिवाः (१) क्रमात् । बधा शिष्यो कंटाळी जई तेमनी पासेथी जता रह्या दशाश्रुताख्यस्कन्धस्य निर्युक्त देश सोऽतनोत् ॥ हता. स्थूलभद्र भद्रबाहु पासेथी दश वर्षमा दश पूर्वो तथान्यां भगवांश्चक्रे संहिताम्भाद्रबाहवीम् । शीख्या हता. त्यार बाद भद्रबाहुने तेमनी वर्तणुक्रमां दोष जणायाथी बाकीनां पूर्वो शिखववानी तेमणे ना पाडी. परंतु ज्यारे स्थूलभद्रे बहु प्रार्थना करी, अने पोताना दोषनी क्षमा मांगी त्यारे तेमणे अ.गळ शिखववा मांड्युं; अने ते एवी शरते के छेल्लां चार पूर्वो तेमणे बीजा कोई शिखववां नहीं. हवे आ कथानी साथ धर्मघोषना शब्दोनो विरोध आपणे एवीरीते मटाडी शकीए के, स्थूलभद्रे छलां चार पूर्वोनु ज्ञान बीजा कोईने आप्युं न होतुं त उपरथी धर्मघोष तेमनुं ज्ञान अपूर्ण मानी लघु हशे अने आ अपेक्षाए भद्रबाहुनुं ज्ञान रथूलभद्र करतां संपूर्ण होवाथी तेओ ' अपच्छिम सयलसुयनाणी' कही 'तेमणे दशवैकालिक, आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, सूर्यप्रज्ञप्ति, कलक' ( ? ) व्यवहार, ऋषिभाषित, आवश्यक, अने छेवटे दशाश्रुतस्कंधनी एम अनुक्रमे दश नियुक्तिओ रची. भगवान् भद्रबा हुए आ उपरांत भद्रबाहवी संहिता पण बनावी हती. डॉ. बुहलरे अत्यार आगमच लख्युं छे के आगमोनी नियुक्तिओ बधी भद्रबाहुनी छे (1 c. p.6.) अने पोते पण आचारांग नियुक्ति अने ओघनियुक्ति प्राप्त करी छे, एम जाणावे छे. आगळ उपर जणा जोईए. 'कल्प' एटले कल्पसूत्र जेने ह १ आ पाठ अशुद्ध छे. आ ठेकाणे 'कल' एवो पाठ कहेवामां आवे छे ते अहं निर्दिष्ट छे - संपादक: C , Aho ! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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