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________________ ६० जैन साहित्य संशोधक [भाग, होवाथी ते 'सिंदरप्रकर'ना नामे तथा सोमप्रभाचार्य रचित होई तेमां पंकटर १०० प होवाथी ‘सोमशतक' ना नामे पण घणीक वखते लखाय-ओळखाय छे. ए प्रबंध जैनसमाजमा घणोज प्रसिद्ध छे अने अनेक स्त्रीपुरुषोना मुखे कंठस्थ होय छे. ए प्रबंध भर्तृहरिना नीतिशतकनी शैलिमां लखाएलो छे; अने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शील, सौजन्य आदि विषयो उपर संक्षिप्त परंतु हृदयंगमरीते तेमां विवेचन करेलुं छे. एनी रचना बहुज सरल, सरस अने सुबोध छे. एमांना केटलाक पद्यो आ प्रस्तुत ग्रंथमां-कुमारपाल प्रतिबोधमां पण प्रथित थएलां नजरे पडे छै. त्रीजो ग्रंथ 'शतार्थ काव्य' नामे छे. ए ग्रंथ सोमप्रभाचार्यना संस्कृत भाषाज्ञानविषयक अनुत्तर पांडित्यने प्रकट करे. छे. ए ग्रंथ मात्र एक वसंततिलका छंद रूपे छे, जेना जुदा जुदा सो अर्थो करवामां आव्या छे. आ कृतिना लीधे विद्वानो तरफथी तेमने शतार्थिकन खास पांडित्यसूचक उपनाम प्राप्त थयुं हतुं अने तेथी पाछळना घणाक ग्रंथकारो तेमने ए उपनाम साथे ज उल्लेखे छे. ए एक वृत्तात्मक ग्रंथना भिन्न भिन्न सो अर्थो तेमणे जाते ज टीका करीने बताच्या छ. टीकाना प्रारंभमां पांच श्लोको लखी स्वविवक्षित सोए अर्थोनी अनुक्रमणिका आपी छे. प्रारंभमांजैनधर्मना २४ तीर्थकरोना अर्थो लखी; वच्चे ब्रह्मा, नारद, विष्णु आदि वैदिक देवो विगेरेना अर्थो पण आलेख्या छे. अने छेवटे पोताना समकालीन एवा, वादी देवसूरि अने हेमचंद्राचार्य जेवा जैनधर्मना महान् धर्मगुरुओना; जयसिंह देव, कुमारपाल, अजयदेव अने मूलराज जेवा गुजरातना क्रमिक ४ चौलुक्य राजाओना; कवि सिद्धपाल जेवा सर्वश्रेष्ट नागारकना; अने अजितदेव तथा विजयसिंह नामे पोताना बंने गुरुओना अर्थो पण अवतार्या छे. सर्वाते स्वकीय अर्थ पण बेसार्यो छे अने समाप्तिमां कोई शिष्यना मुखेथी आत्मप्रशंसापर एवी पांच पद्योवाळी संक्षिप्त प्रशस्ति पण कहेवरावी छे. - आ प्रशस्तिमा जणाव्या प्रमाणे सोमप्रभ गृहस्थावस्थामा प्राग्वाट ( पोरवाड ) जातिना वैश्य हता. तमना पितानु नाम सर्वदेव, अने पितामहy नाम जिनदेव हतुं. जिनदेव कोईक राजानो मंत्री हतो अने ते पोताना समयमां बहु प्रतिष्ठित पुरुष हतो. सोमप्रभे कुमारावस्थामां ज जैनदीक्षा लई लोधी हती, अने तीव्रबुद्धिना प्रभावे समस्त शास्त्रोनो तलस्पर्शी अभ्यास करी आचार्यपदवी प्राप्त करी हती. तेमनी तर्कशास्त्रमा अद्भुत पटुता हती, काव्यविषयमां घणी त्वरितता हती अने व्याख्यान आपवामां बहु कुशलता हती. कुमारपालप्रतिबोध साथे उक्तानुसार सोमप्रभाचार्यनी वर्तमानमां ४ कृतिओ उपलब्ध थाय छे. आकृतिओमां कालानुक्रमथी प्रथम कृति तेमनी सुमतिनाथ चरित्र अने बीजी सूक्तिमुक्तावली होय तेम जणाय छे. बृहट्टिप्पनिका नामे एक प्राचीन जैनग्रंथसूचिमां सुमतिनाथचरित्रनी रचना कुमारपालना राज्यमां थई हती एवो उल्लेख करेलो छ. शतार्थवृत्तनी वृत्तिना अंते पण ते चरित्रनुं नाम आवेलु होवाथी, ते वृत्तिनी पहेला एनी रचना थई हती एम तो स्वतःसिद्ध थाय छे. शतार्थवृत्तनी रचना ई० स० १९७७ थी ११७९ नी वच्चे थई होय, एम मानी शकाय. कारणके एनी अंदर अजयदेवनी पछी गुजरातनी गादिए आवेला मूळराजनो उल्लेख छे. आमूळराज इतिहासमां बाळ मूळराजना नामे प्र तेणे मात्र बेज वर्ष-ई. स. १९७७ थी ११७९ सुधी-राज्य कर्यु हतुं. कुमारपाल प्रतिबोध तेमनी छेल्ली कृति होय तेम लागे छे. १ जुओ-पृष्ठ १४५, १९१.४२२ इत्यादि उपर आपेला संस्कृतपद्यो. २ मूळ वृत्त आ प्रमाणे छे: कल्याणसार सवितानहरेक्षमोह । कान्तारवारणसमानजयाद्यदेव । धर्मार्थकामदमहोदयवीरधार। सोमप्रभावपरमागमसिद्धसरे॥ ३ ' सोमपभो मुनिपतिविदितः शतार्थी ।' मुनिसुंदरसरिरुत गुर्वावली । 'ततः शतार्थिकः ख्यातः श्रीसोमप्रभसरिराट् ।' --गुणरत्नसरिकृत क्रियारत्नसमुच्चय । Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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