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________________ अंक २ गन्धहस्तिमहाभाध्यकी खोज हो गया हो अथवा उनके शिष्य शिवकोटिने जो किसी सूचीके आधार पर एक पंडित महाशय ने, तस्वार्थसूत्रकी टीका लिखी है उसी परसे इस समाजके पत्रोंमें, जो इस प्रकारका समाचार विषयमें उनके नामकी प्रसिद्धि हो गई हो। कुछ प्रकाशित कराया था कि, गं भी हो, यथार्थ वस्तुस्थितिको खोज निकालनेकी आस्टिया देशके अमक नगरकी लायब्रेरीबहुत बड़ी जरूरत है. जिसके लिये विद्वानोंको प्र. में मौजूद है और इसलिये वहाँ जाकर उसकी यत्न करना चाहिये । अस्तु। ___ कापी लानेके लिये कुछ विद्वानोंकी योजना होनी ' गन्धहस्तिमहाभाष्य और आप्तमीमांसाके सम्ब- चाहिये, वह बिलकुल उनका भ्रम और बेसमझीका न्धमें हम अपने इन अनुसंधानों और विचा. परिणाम था। उन्हें सूची देखना ही नहीं आया। रोको विद्वानोंके सामने रखते हुए उनसे अत्यन्त सचीमें. जो किसी रिपोर्टके अन्तर्गत है. आस्टिनम्रताके साथ निवेदन करते हैं कि वे इन पर याके विद्वान् डाक्टर बुल्हरने कुछ ऐसे प्रसिद्ध बड़ी शांतिके साथ गहरा विचार करनेकी कृपा जैनग्रंथों के नाम, उनके कर्ताओंके नाम सहित प्रकट करें और उसके बाद हमें अपने विचारोंसे सूचित किये थे जो उपलब्ध हैं, तथा जो उपलब्ध नहीं करके कृतार्थ बनाएँ । यदि हमाग कोई अनुसंधान हैं किन्तु उनके नाम सुने जाते हैं । समंतभद्रका अथवा विचार उन्हें ठीक प्रतीत न हो तो हमें गंधहस्तिमहाभाष्य' भी अनुपलब्ध ग्रंथोंमें था युक्तिपूर्वक उससे सूचित किया जाय । साथ ही, जिसका नाम सुनकर ही उन्होंने उसे अपनी जिन विद्वानोंको किसी प्राचीन साहित्यसे गन्ध- सूची में दाखिल किया था। उसके सम्बन्धमै यह हस्तिमहाभाष्यके नामादिक चारों बातों से किसी कहीं प्रकट नहीं किया गया कि वह अमुक लायभी बातकी कुछ उपलब्धि हुई हो, वे हम पर उसके प्रेरीमें मौजूद है । पंडितजीने इस सूची में गंधहस्ति. प्रकट करनेकी उदारता दिखलाएँ, जिससे हम अ- महाभाष्यका नाम देख कर ही, बिना कुछ सोचे पने विचारोंमें यथोचित फेरफार करनेके लिये समझे, आस्ट्रिया देशके एक नगरकी लायबेरीमें समर्थ हो सकें, अथवा उसकी सहायतासे किसी उसके अस्तित्वका निश्चय कर दिया और उसे दूसरे नवीन अनुसंधानको प्रस्तुत कर सके। सर्व साधारण पर प्रकट कर दिया ! यह कितनी आशा है, विश पाठक हमारे इस समुचित भूलकी बात है ! हमें अपने पंडितजीकी इस कार्रनिवेदनपर ध्यान देनेकी अवश्य कृपा करेंगे, वाई पर बहुत खेद होता है जिसके कारण समा. और इस तरह एक ऐतिहासिक तत्त्वके निर्णय जको व्यर्थ ही एक प्रकारके चक्करमें पड़ने और करने में सहोयोगिताका परिचय देंगे। चंदा एकत्र करने-कराने आदिका कष्ट उठाना पड़ा। __ अन्त में हम अपने पाठकों पर इतना और प्रकट आशा है पंडितजी, जिनका नाम यहाँ देनेकी हम किये देते हैं कि इस लेखका कुछ भाग लिखे जा- कोई जरूरत नहीं समझते, आगामीसे ऐसी मोटी नेके बाद हमें अपने मित्र श्रीयुत मुनि जिनविज भल न करनेका ध्यान रखेंगे। यजी आदिके द्वारा यह मालूम करके बहुत अफ. सोस हुआ कि डेक्कन कालिज पूना लायब्रेरीकी (जैन हितैषी, भाग १४, अंक 4 से उद्धृत ।) Paaman Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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