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________________ (क) पुस्तक प्रकाशन कार्यमा जे रकम सं- लीक स्थूल रूपरेखानुं पण वर्णन करवामां आज्यु. स्थाने मळशे तेनो योग्य हिस्सो-लगभग हतुं. ए. वर्णन सांभळी मारा: मनमा ते बधुं साहित्य है जैनग्रन्थ प्रकाशनना कार्यमा खर्च कर- जोवानी प्रबल उत्कंठा धई वी, अने तेथी, हुं मुंबवा कबुलात आपशे. अने ईथी विहार करी अहीं (पूनामां) आव्यो. अहीं (८) छपाएला जैनग्रन्थ ना वेचाणना खरच आव्या पछी, ए. संस्थाना कार्यवाहको साथे विशेष खुटण बाद करता रहेला नफानी है रकम परिचय थयो. मुंबईमां जे मीटिंग भराणी हती अने सर्वथा जैन साहित्यना अर्थे जूदी राखी तेमां जे आ कार्यमा मदत करवा माटें केटलाएक मूकवामां आवशे. भाईओनी कमीटी नीमवामां आवी हती, तेनुं परि२-आ उपरांत, जैन समाज - वधारानी रु० णाम अंते. शून्य जेवू जपातुं लागतुं होवाश्री, ए. २५००० नी रकम आपवा कबुलात लोकोवा मनमा बहु ज़ निराशा थई आवी हवी. आपशे तो संस्था तरफथी तेना बदलामा मारो समागम थया पछी, ए कार्यमा प्रयत्न करवा (अ) संस्थानो जे विद्यमान हॉल छे तेनी बाजूमां मने ज. ए भाईओ खास प्रेरणा करवा लाग्या. त्यारे एक हॉल (जेना खर्चनो अडसट्टों रु. मने बहु मुंझवण थवा लागी. मारी परिस्थितिम्रो ३०००० नो करलो छे) बांधवामां आ- विचार जणावतां में, प्रथम तो ए भाईओने एमज वशे, अने ते दाता (जो तें एक व्यक्ति हशे चोखो जबात आप्यो के, आ कार्यमां, मारा जेवा तो ) नी अथवा जैन समाजनी सम्मतिं एक अज्ञातमार्गी, एकांतवासी अने एकाकी रमता अनुसार तेनु योग्य नाम आपवामां आवशे. ( अथवा रखडता) भिक्षुए भाग लेवाथी कोई सफळता मळे तेम नथी. कारण के पैसा आपनारा (ब) आ रकम एक स्थायी फंडना रूपमा अलग हमेशां कार्यनी उपयोगिता-अनुपयोगितानो विचार राखवामां आवशे अने तेना व्याजनी रक- करवा के समजवा जेटली फुरसदवाला होता नधी मनो, ( संस्थाना साधारण फंड माटे तेमांथी. अने तेथी सीधा-सादा माणसना कहेवा उपरथी तेश्रो पांच टका कादी लई) जे जे कार्यमा उपयोग खीसामाथी चेक काढी आपे, एवी आशा राखवीः करवानुं जैन समाज सूचवशे ते ते कार्यमां मुर्खता गणाय.लोको हमेशां म्हों₹ जोई चांदलो कर तेनो उपयोग करवामां आवशे.. वानी देवथी टेवाई रहेला छे, तेथी तेवा मोस म्होंढावाळा माणसना कपाळे ज तेओ चंदन-चोखा मा रीपोर्टमां, उपर मारूं नाम लेवामां आव्यु छे चोंटाडवा तैयार थाय छेमाटे,आ कार्यमा तो, कोई । तेथी ए सम्बन्धमां मारे अहीं केटलोक खुलासा कर- वहश्चतपदविभूषित, बहुजनसम्मत अने बहुशिष्यपरिवानी आवश्यकता छे. आ रीपोर्टमा प्रारंममा रापाटमा प्रारममा वृत गणाता नामवर आचार्यनी सेवा-स्तवना करवाथी जणाव्या प्रमाणे ज्यारे मुंबईना गोडीजीना जैन मुबईना गाड़ीजाना' जन तमारी आशा सफल थाय तेम छे. परंतु, मने ए उपाश्रयमा प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी म.ना प्रमुख- संस्थाहस्तक रहेला समग्र जैनपुस्तकोने ध्यानपूर्वक पणा नीचे, आ संस्थाने जैनसमाज तरफथी सहा. : जोवानो अने तेमां छुपाएला विविध ऐतिहासिक यता करवा माटे जे मीटिंग मळी हती ते वखते हुँ पण त्यां हाजर हतो. संस्था तरफथी डॉ. बेलवलकर साधनो-प्रमाणोनुं विस्तृत टाचण करी लेबानो प्रर्वविगेरेए जे भाषणो आप्यां हतां तेमां, संस्थानी ल लोभ हतो, तेथी विचार थयो के मोहुँ आ स्वाधीमतामां आवेला विशाल जैन साहित्यनी केट. लोकोने उपर प्रमाणेनो' सको जवाप आपीभेज अथवा Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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