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________________ जैन साहित्य संशोधक [ भाग. (6) set. apart this amount as a per- त्मिक दृष्टिए छे, व्यावहारिक के आर्थिक दृष्टिए manent fund the interest of which : आ बबित जोवानी नथी. इत्यादि. (less five per cent, deducted as contribution for the general funds of the जैनकोमनी साथेना अमारा कोलकरार करवाना Institute ) would be exclusively devo- अंगे केवा केवा प्रकारनी मुस्केलिओ. उभी थवा ted to such Jain purposes as the Asso- पामी छे तेनं आ स्थळे सविस्तर वर्णन करवू अनावciation might mention. श्यक छ. आ कोलकरारनी भांजगड थवा दरम्यान तात्पर्य-नामदार गवर्नरता हाथ आ संस्थानी 4 ॥ जैनगहस्थोना सूचववा उपरथी केटलीक वखते उद्घाटन क्रिया थई गया पछी मुंबई विगेरे स्थळो छा- अमने आशा थती के, ए कोम पासेंथी २५-५० मा आ संस्था प्रासाद्ध पामा चुका हती. अन तेथी हजार रुपिआ प्राप्त करवा अमे शक्तिमान् थेशं, सेक्रेटरीओ आ अवसरनो लाभ लेवामां बिलकुल त्यारे केटलीक वखते एवी निराशा थती के आटली डीस न करतां तुरतज मुंबईना केटलाक मोटा व्या- बधी भांजगड के वाटाघाटना परिणाममा मात्र पारिमा पास गया हता. त्या खास करीने तेमणे न मपिआनो ज लाभ थवानो के. छेवटमा जैनकोमना केटलाक आगवानोनी मुलाकात लीधी. अमे मात्र मुनि जिनविजयजीने धन्यवाद आपीए श्रा प्रमाणे अनेकवार मुंबई जई आव्या पछी अने छोए के अमना उत्साह अने अश्रान्त प्रयत्नने लइने अनेक गृहस्थोनी साथे आ विषयमा वातचीत थेया संस्थानी पहेली संवत्सरी (ता. ६, जुलाई, १९१८) पछी जैन समाजनी एक मीटिंग भरवानी गोठवण ना प्रसंगे जैन समाज तरफथी निम्न लिखित उद्थई शकी हती. आ मीटिंग ता. १७ फेब्रुभारी, गार प्रकट करवा तेओ अधिकारी थया हता. १९१८ ना दिवसे गोडीजीना जैन उपाश्रयमा प्रवतक श्रीकान्तिविजयजी महाराजना प्रमुखपणा नीचे x x x x मळी हती. संस्था तरफथी डॉ. बेस्वलकर अमे डॉ. सरदेशाईनां भाषणो थयां हतां अने तेमां संस्थाना जैन कॉन्फरन्सना सेक्रेटरी अने भी संस्थाना उद्देश्यो समजाववा साथे जैनकोमने आ कार्यमा कार्यकारी मंडळं वच्चना करारनी शरतो नीचे प्रमापोतानो भाग भजववा माटे निवेदन करवामां आव्यं णे यएली छ:हतुं आ शुम कार्यमा जैनकोमने खास सहानुभति १-जैन कोम तरफथी आ संस्थाने रु.२५००० बताववानुं कारण ए हां के डेक्कन कॉलेजना हस्त नौ रकम, खास कोई पण प्रकारना विशिष्ट लिखित पुस्तकोमा मोटी संख्या जैनधर्मना ग्रन्थोनी प्रतिवन्ध सिवाय जो दान करवामां आवंशे छ भने तेस्ला माटे तेमनी सहानुभूति उपर ए तो संस्था तेना बदलामां नीचे आपली शेरसंस्थानो हक्क छे. शेठ गुलाबचंद देवचंद आदि गृह- तो कबूल करशे.. स्थोए पण ए मीटिंगमां प्रसंगोचित भाषणो कर्या (न) व्यक्तिगत दाताओने, तेमनी बक्षीसना प्रहता. ते पछी, पांड भेगो करवा माटे जैनकोममा माणमां, संस्था तेमने पेट्रन, वाईस पेट्रन, केटलाक आगेवानोनी एक कमिटी नीमवामां आवी बेनीफेक्टर अने लाईफ मेम्बरना साधारण हती. ठेवटे, प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी महाराजे हक्को बक्षशे. प्रोतांजनोने आ उमदा कार्यमा मदत करवा माटे (ब) १० हजार अथवा तेथी अधिक रकम आपोसाथी बनतु करवा प्रेरणा करी हती. तेमणे ज- पनार दानी गृहस्थY, तेमनी इच्छा हशे णाव्यु हतु के मा कार्यनी उपयोगिता छ, ते आध्या तो, तकती उपर नाम कोतरवामां मावशे. Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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