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________________ जैन साहित्य संशोधक. - [भाग १ बेसी रहीश तो, जे कार्य माटे हुं अहीं आव्यो छु ते संस्थाने भेट आपवानी कबूलात आपवानुं साहस यथेष्ट रीते पूर्ण थाय तेम नथी. कारण के ए भाई- कर्यु हतुं. अने तेना बदलामां, संस्था पासेथी, भोनी प्रसन्नता भरेली सहानुभूति सिवाय माराथी केटलीक वाटाघाट कर्या पछी, उपर कलम १ मा ए विशाल जैन साहित्यनु स्वेच्छापूर्वक निरीक्षण जणाव्या प्रमाणे शरतो कबूल कराववामां आवी हती. करी शकाय तेम संभवतुं नथी. बीजं, संस्थान कार्य जैन समाजना सदभाग्ये, में आपली उपरोक्त पण मने बहु ज उपयोगी अने अत्युत्तम जणायु. ए कबलातना समाचार वर्तमानपत्रोमांथी कलकत्ता संस्थाने जो प्रारंभमां जैन समान तरफथी सारी निवासी जनजातिशिरोभूषण धमप्रिय बाबु श्रीबद्रीदासहायता मळे तो, ते, समाज अने देश-बन्नेनी दृष्टिए सजी मुकीमना सुपुत्र बाबू श्रीराजकुमार सिंघजीनी एक मानप्रद कार्य गणाशे. जैन समाज पोताना जाणमां आव्या अने तेथी तेमणे मने एक पत्र द्वारा निर्जीव खाताओमां ज्यारे दर वर्षे हजारो-लाखो- ए संबन्धमा विशेष हकीकत जणाववानी सूचना करी. रूपिमा (फळनी आकांक्षा वगर ज?) खर्चे छे ते ज प्रसंगे वडोदरा निवासी अने गायकवाड सरत्यारे भावा एक सजीवन भने सार्वजनिक खातामां कारना मानवंता झवेरी सेठ लालभाई कल्याणभाई २५-१०हजार रूपिमा आपवा तेने कांई हिसाबमां कार्य प्रसंगे अहीं (पूनामां) आवतां मने मळवा नभी. तेम ज आज सुधीमां, आवी जातना कोई पण आव्या. तेमने प्रत्यक्षमा ए संबंधी बधी हकीकत जैनेतर सज्जनो जैनसमाज पासे विशिष्ट रीते समजावतां, तेम ज उक्त बाबूजीने सविस्तर पत्र लखी सहायता मांगवा आव्या नथी अने जो भा प्रसंग मोकलतां, ए बन्ने उत्साही, उदार अने उमंगी सद्आव्या छे तो तेमने निराश मने पाछा वाळवामां गृहस्थोए आ कार्यमा यथेष्ट मदत आपवा-अपावजैन कोमने एक प्रकारचें कलंक जेवू छे. तथा ताता वानो भार आनंदपूर्वक पोताना माथे उपाडी लेवानो बन्धुओ जेवा पारसी सज्जनोए, के जेमना साहित्य के स्वीकार को. थोडा ज दिवस पछी मने बाबू श्रीराधर्मनो ए संस्था साथे कोई पण प्रकारनो सम्बन्ध जकुमारसिंघजीनो एक बीजो पत्र भाव्यो. तेमां नथी, तेमणे सौथी प्रथम एक उदार रकम आपी तेमणे २५ हजार ज नहीं परंतु ५० हजारनी मोटी पारसीकोमनी किर्ति बधारी छे, त्यारे जैनसमाजनो रकम भेगी करी आपवानी इच्छा प्रदर्शित करी, अने तो, ए संस्थामां एक दृष्टिए स्वार्थ पण छे; तेथी जो ए बीजी २५ हजारनी वधारानी रकमना बदलामां काईक सहायता आपवामां आवे तो परमार्थ साथे जैनकोमना अथवा कोई जैन गृहस्थना नामे एक स्वार्थ साधन पण थाय तेम छे. आ बधा विचारोना हॉल बांधवा संबंधी व्यवस्था करवा जणाव्यु. बाबू डीधे, मने एमां यथाशक्ति प्रयत्न करी जोवानुं साहेब पोतानी पूरी लागणी अने वजनदार प्रयत्नना साहस थई आव्यु. अने तदनुसार, में केटलाएक लीधे थोडा ज दिवसोमां जुदा जुदा सद्गृहस्थो परिचित अने साहित्यप्रिय गृहस्थोने, आ कार्यमां पासेथी आपवा कबूलेली रकमनां मोटा भागनां वचनो काईक सहायता आपवा-अपाववा माटे, प्रत्यक्षमा मेळवी लीधां हता. तथा २५ हजारनी सामठी एक तेम ज पत्रोद्वारा सूचनाओ करवा मांडी. तेना परि- नादर रकम, दानवीर सेठ हीरजी खेतसी पासेथी णामे, केटलाक भाईओनी आशा आपनारी अने तेमना नामे लाईब्रेरी हॉल बंधाववानी शरते, ल. विश्वास भरेली सम्मतिथी, में, ए संस्थाना प्रथम खावी लीधी हती. वार्षिकोत्सवना मोटा मेळावडा प्रसंगे, उपर जणाव्या आवी रीते आ कार्यने पार उतारवार्नु अने ते द्वारा प्रमाणे, २५ हजार रूपिमा; जैनसमाज तरफथी ए जैन समाजनुं गौरव वधारवा साथे जैनसाहित्यना Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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