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________________ आस्वत्याम *सप्तन्नशाकनवभिर्भाजितं शेषकं तथा। लोचननं युतं रामै वियाच्च यथा क्रमम् ॥ ८॥ शलभाश्च शुका अग्रे मुषका स्वर्णताम्रको । खचक्र परचक्रं च वृष्टिवृष्टिविनाशनम् ॥ ९ ॥ शकः पञ्चभिः सप्तभिर्गोभिरीशै श्चतुर्धाहतः सप्तभक्तावशिष्टः । द्विनिघ्नं त्रिभिर्युक्तमुद्भिजरा अ-- ___ण्डजाखेदजानां हि विंशोपकाः स्युः” ॥१०॥ जलाढक विधिः"युग्माजगोमीनगते शशाङ्के यदा रवौ कर्कटकं प्रयाति। #उदाहरण-शाका १८३३ को ७ से गुणा किया तो १२८३१ हुए, इस में ९ का भाग देने से लब्ध. १४२५ मिले शेष ६ बचे, इस शेष ६ को २ से गुणा किया तो १२ हुए, इस में ३ को युत किया तो शलभ का विश्वा १९ हुए, लब्ध से शुकादि का भी विश्वा बनावें। उदाहरण-शाका १८३३ को क्रमशः ५, ७, ९, ११ से गुणा तो ९९६५, १२८ ३१, १६४९७, २०१६३ हुए, सब में ७ का भाग देने से शेष २, ०, ५, ३ बचे इन्हों के २ से गुणा तो ४, ०, १०, ६ हुए इन सभो में ३ मिलाने से उदमिज़ का 9 जरायुज का ३ अंडज का १३ खेदज का ९ विश्वा हुए। + उदाहरण-शाका १८३३ में कर्क की संक्रान्ति कुम्भ राशि के चन्द्रमा में हुई, इससे जल का आदक सङ्ख्या ९६ है, इसको तीन जगह धरि कै क्रमशः १०,६,४ से गुणा किया तो ९६०.५७६,३८४ हुए इनमें २० का भाग देने से लब्ध ४८, २८१४८, १९।१२ मिले । समुद्र में ४८ पर्वत पर २८१४८ पृथ्वी पर १९१२ आढक जल जानें ।। Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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