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________________ प्रहध्रुवाधिकारः । ३५ *शाकं च वेदगुणितं सप्तभिभीगमाहरेत् । शेषं द्विघ्नं त्रिभिर्युक्तं भुक्तविश्वाख्य सङ्ख्यया ॥ २ ॥ क्षुधा तृषा च निद्रा च आलस्योधममेव च । शान्तिः क्रोधस्तथा दम्भो लोभमैथुनयोः क्रमात् ॥३॥ ततश्च रसनिष्पत्तिः फलनिष्पतिरेव च । उत्साहः सर्व लोकानां फलान्येतानि चिन्तयेत् ॥ ४॥ शाकं च वसुभिर्निन्नं नवभिर्भागमाहरेत् । शेषं द्विघ्नं रूपयुक्तं प्राप्तविश्वाख्य संज्ञकम् ॥ ५ ॥ उग्रत्व पाप पुण्यानि व्याधिश्व व्याधिनाशनम् । आचारश्चाप्यनाचारो मृत्युर्जन्म यथा क्रमम् ॥ ६॥ देशोपद्रवस्वास्थ्यञ्च चौरभिश्चौरनाशनम् । वह्निभिर्वह्निशान्तिश्च ज्ञातव्यानि यथा क्रमम् ॥ ७ ॥ * उदाहरण-शाका १८३३ को ४ से गुणा तो ७३३२ हुए इसमें ७ का भाग देने से लब्ध १०४७ मिले, शेष ३ बचे इस शेष ३ को २से गुणा किया तो ६ हुए इसमें ३ युक्त किया तो क्षुधा का विश्वा ल हुए लब्ध से पूर्व प्रक्रिया के अनुसार तृषा आदिक को बनावें ॥ + उदाहरण-शाका १८३३ को ८ से गुणा तो १४६६४ हुए इसमें ९ का भाग दिया तो लब्ध १६२९ मिले, शेष ३ बचे इस शेष ३ को २ से गुणा किया तो ६ हुए इसमें १ युक्त किया तो उग्र का विश्वा ७ हुए, लब्ध से पापादिक का विश्वा भी उक्त प्रकार से बनावें ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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