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________________ भास्वत्याम् भा० टी० श्रीमान् शतानन्द इस नाम से प्रसिद्ध जो आचार्य वह श्रीकृष्णजी के चरण कमलों को नमस्कार कर शिष्यों के हित के लिये भास्वती नाम का ग्रन्थ बनाते हैं । वर्तमान शाका में १०२१ घटाने से इस ग्रन्थ के उत्पत्ति का वर्ष होता है । ( इसी का नाम शास्त्राब्द भी है ) ॥१॥ उदाहरण- वर्तमान शाका १८३३ में १०२१ घटाया तो शास्त्राब्द ८१२ हुआ ॥१॥ गतकलिः प्रकारान्तरेण शास्त्राब्द विधिश्वशाको नवादीन्दुकृशानु युक्तः कलेर्भवत्यब्द गणस्तु उत्तः। वियन्नभोलोचनवेद हीनः शास्त्राब्दपिण्डः कथितः स एव ॥२॥ सं० टी०-इष्टशकमध्ये नवाद्रीन्दु कृशानुयुक्ते सति कलेगताब्दा गतवर्षा भवन्ति तेषु कलिगत वर्षेषु वियन्नभोलोचनवेद हीने सति स एवाब्दपिण्डोभवति तमेव शास्त्राब्द पिण्डं कथयन्ति दैवज्ञाः ॥ २ ॥ भा०टी०-वर्तमान शाका में ३१७९ युक्त करने से गत कलि होता है । गतकाल में ४२०० को घटाने से शास्त्राब्द पिण्ड कहाता है ॥२॥ उदाहरण - वर्तमान शाका १८३३ में ३१७९ युक्त किया तो गतकलि ५०१२ हुआ और गतकलि ५०१२ में ४२०० घटाया तो शास्त्राब्द ८१२ हुआ ॥२॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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