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________________ भाखत्याम् । युक्तं राहुपुच्छः केतुः स्यात्, शराकृतिभिर्भक्तो राश्यादिको राहुः केतुश्च भवति ॥ १० ॥ "धुवृन्दमष्टाहतमत्रदिग्भिलब्धंध्रुवं युग्दलितं भचक्रात्। संशोधिते राहुरयं प्रतीपान्नक्षत्रगो पातगतश्च तहत्" ॥१॥ ___ भा०टी०-दिनगण को ४ से मुणि के उसमें १० का भाग देने से जो लब्ध मिले उसको पूर्व के ल्याये हुए ध्रुवा में युक्त करके उसको २७०० में घटाने से राहु होता है, उसमें २२५ का भाग देने से राहु की राशि आदिक होती हैं । राहु में चनार्द्ध १३५० को युक्त करने से केतु होता है । उसमें २२५ का आग देने से केतु की राशि आदि होती हैं ॥१०॥ उदाहरण-दिनगण २७ को ४ से गुणा तो १०८ हुए इसमें १० का भाग देने से लब्ध १० । ४८ । ० मिले इसको राहु के ध्रुवा ५१ ३०।२५।३९ के आधे २५६५।१२।४९ में युत किया तो २५७६।०।४९ हुए इसको २७०० में घटाया तो राहु १२३४५९।११ हुआ, इसमें २२५ का भाग देने से राहु की राशि आदि ०।१६।३९।४७ हुई, राहु १२३॥ ५९।११ में चक्रार्द्ध १३५० को युक्त किया तो केतु १४७३।५९।११ हुआ, इसमें भी २२५ का भाग देने से केतु की स्पष्ट राशि आदि ६।१६।३९।४७ हुई ॥१०॥ राहु दिनगण सारणीयम् । एकाधङ्कानि ( एकाई) १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ दिनगण १ १ २ २ २ ३ | ३ अंश २४ ४८ | १२ ३६ . २४ ४८, १२ ३६, कला . . . . • • • • • विकला Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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