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________________ यह सुनकर फरियादो औरत बोल उठो-'काजी साहब, मुझे न्याय मिल गया। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।' अदालत बरखास्त हो गई। रास्ते में बादशाह बोला-'काज़ी साहब, अगर आज आपने इन्साफ़ न दिया होता तो मैं इस तलवारसे........।' क़ाज़ी फ़ोरन् अपना डंडा दिखाकर बोला-'और और आपने अपने जुर्मका इक़बाल न किया होता तो मैं आपकी हड्डियां तोड़ देता।' उपाधियाँ इंग्लैण्डका बादशाह जेम्स अपना खज़ाना भरनेके लिए उपाधियाँ बेचा करता था। वह जानता था कि किसी उपाधि या लकबसे कोई महान् नहीं बन जाता; महान् बननेके लिए तो सद्गुण चाहिएँ। मगर वह मूर्ख लोगोंकी तुच्छ अहंकार-वत्तिका पोषण करके फ़ायदा उठाता था। एक रोज़ एक मान चाहनेवाला उसके दरबारमें आया । 'आपको कौन-सी उपाधि चाहिए ? 'मुझे 'सज्जन' बना दीजिए।' 'मैं आपको लॉर्ड, ड्य क, वगैरह बना सकता है, लेकिन सज्जन बना सकना मेरी ताक़तसे बाहर है।' आखिरी उपदेश यूनानके महात्मा अफ़लातूनने मरते वक़्त अपने सब बालकोंको बुलाकर कहा १. क्षमा-किसीने तुम्हारे खिलाफ़ कुछ कहा हो या किया हो उसे भूल जाना। सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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