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________________ २. निरहंकार - अपने किये उपकारको भूल जाना । ३. विश्वास - यह बात दिलकी दीवारपर लिखकर रखना कि कोई भला-बुरा नहीं कर सकता; जो करता है सो सिरजनहार करता है । ४. वैराग्य - एक दिन सबको मरना है यह हमेशा याद रखना । भूखा भगवान् पूछा - 'भगवन् ! आप नारदने भगवान् से संसारके समस्त ऐश्वर्यके स्वामी होकर भी भर पेट भोजन क्यों नहीं करते ?" भगवान् बोले—‘नारद ! अगर मैं पेट भरकर खाऊँ तो दुनियामें भूखों मरते लोगोंका दुःख न जान सकूँ, इसलिए मैं पेट भरकर नहीं जीमता ।' अज्ञात सेवा मूर युद्धमें सेनापति सिडनी घायल होकर ढह पड़ा । उसी वक़्त वहाँ एक सिपाही आ पहुँचा । प्रतिपक्षी सैनिकोंने उसका तलवारोंसे मुक़ाबला किया। सिपाहीने वीरतापूर्वक उनके प्रहारोंका जवाब दिया और सिडनीको उठाकर घोड़ेपर बिठाकर दुश्मनोंके वारोंका मुक़ाबला करता हुआ छावनीपर पहुँच गया । अशक्त सिडनीने धीमेसे पूछा - 'सिपाही, तेरा नाम क्या है ?" साहसी सैनिकने विनयपूर्वक जवाब दिया- 'माफ़ करें साहब, मैने नाम या इनामके लिए यह काम नहीं किया ।' यह कहकर वह सेनापतिको तम्बू में सुलाकर सर्राता हुआ चला गया ! बादमें सिडनीने उस सिपाहीकी बड़ी तलाश की, मगर उसका पता न लगा । सन्त-विनोद ६६
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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