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________________ गुरुकी नज़र में सोना और मिट्टी समान थे । वे उनमेंसे एकको उठाकर उँगलीपर फिराने लगे । फिरते-फिरते वह जमुनामें जा गिरी । भेंट देने वाला फ़ौरन् नदीमें कूद पड़ा, लेकिन उसे चूड़ी नहीं मिली । जब वह खाली हाथ लौटा तो गुरु गोविन्दसिंहने दूसरी चूड़ीको भी फेंकते हुए बताया- 'देख, चूड़ी वहाँ पड़ी हैं ।' आज़ादी दो भाई थे, एक तो राजाकी नौकरी करता था, दूसरा शारीरिक परिश्रम से अपनी रोजी कमाता था, एक बार अमीर भाईने ग़रीब भाईसे कहा - 'तुम नौकरी क्यों नहीं कर लेते जिससे परिश्रम के कष्टसे छुटकारा पा जाओ ?' 'तुम मेहनत क्यों नहीं करते जिससे चाकरीके अपमानसे छूट जाओ ?” दूसरेने तड़ाक से जवाव दिया । स्वात्माभिमान हातिमताईसे पूछा गया - 'क्या आपने किसीको अपने से भी ज़्यादा स्वात्माभिमानी देखा है ?" हातिम बोला- हाँ । एक दिन हमारे यहाँ बहुत बड़ा भोज हो रहा था। उसमें मैंने एक लकड़हारेको देखा जो पीठपर गट्ठर रक्खे हुए था । मैंने उससे पूछा - 'तुम हातिमकी दावत में क्यों नहीं गये ? आज उसके दस्तरख्वान पर बहुत से लोग जमा हुए हैं ।' उसने जवाब दिया- 'जो अपने हाथकी कमाई रोटी खाता है वह हातिमताईका अहसान न लेगा ।' उस शख्सको मैंने आत्म गौरवमें अपने से बढ़कर माना । - शेख सादी ३५ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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