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________________ अमरता नौशेरवाँके पास कोई खबर लाया कि, 'खुदाके फ़ज्लसे आपका फ़लाँ दुश्मन मर गया।' बादशाहने कहा--'क्या तुमने सुना है कि खुदा किसी तदबीरसे मेरी जान बचा सकेगा? अपने दुश्मनकी मौतसे मझे कोई खुशी नहीं हो सकती, क्योंकि ग्वुद मेरो ही ज़िन्दगी जाविदानी ( अनन्तकालीन ) नहीं है।' याद किसी बादशाहने एक महात्मासे पूछा--'क्या आपको कभी मेरी भी याद आती है ?' उसने जवाब दिया, 'हाँ, जब मैं ईश्वरको भूल जाता हूँ।' भावना दो दोस्त तफ़रीहके लिए बाहर निकले, एकने कहा--'चलो यार, भागवतकी कथा सुनने चलें' । पर दूसरेको कथामें विशेष रस नहीं आया इसलिए वह अपने मित्रसे कहकर किसी मुजरेमें चला गया। पर वहाँ शीघ्र ही उसकी तबीयत ऊब गई; कहने लगा-'मेरे मित्रको देखो, धर्म-श्रवणका आनन्द ले रहा होगा और मैं इस ग़लीज़ जगहमें फंसा हुआ हूँ !' लेकिन जो भागवत सुन रहा था वह भी जल्दी ही उकता गया; सोचने लगा-- 'कहाँ फंस गया ! इससे तो मेरा दोस्त ही अच्छा रहा, मज़े लूट रहा होगा।' जब वे मरे, तो भागवत सुननेवाला नरक गया और वेश्याके यहाँ जानेवाला स्वर्ग गया। सचमुच, मनुष्यकी गति भावोंके अनुसार होती है । ३६ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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