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________________ एक रात धोबीके यहाँ चोर आये और सारा सामान बांधकर ले जाने लगे, मगर कुत्ता नहीं भोंका। गधेने उसे बार-बार समझाया कि इस वक़्त भोंककर मालिकको जगाना तेरा फ़र्ज़ है। मगर नाराज़ीके मारे कुत्ता चुप ही रहा । गधेने उसकी गैर-वफ़ादारी देखकर खुद ही रेकना स्वधर्म समझा । मालिक चिढ़ा कि कमबख्तने बेवक़्त रेंक-रेंककर नींद उड़ा दी। उसने तावमें आकर डंडा उठाया और गधेको पीटना शुरू कर दिया । उसे इतना मारा कि वह मर गया। इसके बाद धोबीकी घरपर नज़र पड़ी तो देखा कि घर खाली है ! उसने सोचा कि चोर आये मगर यह हरामी कुत्ता भोंका ही नहीं ! उसने उसी डंडेके एक ही वारसे कुत्तेकी खोपड़ी चकनाचूर कर दी। __यह स्वधर्म पालन न करने के कारण मारा गया, वह परधर्ममें पड़नेके कारण । सेज एक दासी रोज़ अपनी रानीकी सेज बिछाया करती, खूब सजाकर । एक दिन उसकी इच्छा हुई कि खुद उसपर लेटकर देखे । लेटनेपर उसे नींद आ गई। इसी बीच रानी आ गई। वह दासीको सेजपर सोई देख आगबबूला हो गई। दासीको झकझोरकर जगाया। वह बेचारी डरसे थर-थर काँपने लगी। रानीने उसे कोड़े लगाने शुरू किये। दासी पहले तो रोईचिल्लाई। बादमें ज़ोरसे हँसने लगी। रानीको इससे बड़ा ताज्जुब हुआ । उसने उससे हँसनेका सबब पूछा। दासी बोली-'रानीजी, मैं एक दिन थोड़ी देरके लिए इस पलंगपर सो गई तो मुझपर ऐसे कोड़े पड़ रहे हैं, लेकिन इसपर रोज़ सोनेवालेकी न जाने क्या हालत होगी-यही सोचकर मुझे हँसी आ गई।' सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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