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________________ ममुद्र, मैं, तो सदा तेरे साथ हूँ। तू याचना करके अपने विश्वासको क्यों खो रहा है ? क्या मैं बिना माँगे नही देता ? भक्तके योगक्षेमका सारा भार उठानेकी तो मैने घोषणा कर रक्खी है।' सन्त-'सच है ! मैं भूला था प्रभो !' निन्दा शेख सादी अपने पिताके साथ मक्का जा रहे थे। क़ाफ़िलेका नियम था-आधीरातको उठकर प्रार्थना करना। एक दिन आधी रातको सादीने प्रार्थनाके बाद दूसरे लोगोंको सोते देख अपने पितासे कहा-'देखिए, ये लोग कितने आलसी है, न उठते है, न प्रार्थना करते हैं !' । पिताने कड़े शब्दोंमें कहा-'अरे सादी! बेटा ! तू भी न उठता तो अच्छा होता। जल्दी उठकर दूसरोंकी निन्दा करनेसे तो न उठना हो ठीक था।' जानकार संत मंसुरको सूलीपर चढ़ानेसे पहले लोगोंने उन्हें घेर लिया और पत्थर बरसाने लगे। मौलाना रूमको लगा कि इस वक्त लोगोंका साथ देना फ़र्ज़ आ गया है । चुनांचे उन्होंने भी एक फूल मंसूरपर मारा। मंसूर बोले- 'तुम्हारे इस फूलसे मुझे वज्रसे भी ज्यादा आघात पहुंचा है।' मौलाना-'और इन लोगोंके पत्थरोंसे कुछ नहीं ?' मंसूर-'ये तो अनजान हैं, पर तुम तो मुझे जानते थे।' स्वधर्म परधर्म एक धोबीके यहाँ एक गधा था और एक कुत्ता। कुत्तेने देखा कि मालिक उसे गधेसे कम खाना देता है, इसलिए वह मालिकसे खफ़ा रहने लगा। २६ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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