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________________ साधुता जाफ़र सादिक़ एक मशहूर सन्त थे। एक बार किसी आदमीके रुपयोंकी थैली चोरी चली गई । भ्रमवश उसने उन्हें पकड़ लिया। आपने पूछा-'थैलीमे कितने रुपये थे ?' 'एक हजार,' उसने बताया। आपने अपनी तरफ़से उसे एक हजार रुपये दे दिये । कुछ दिनों बाद असली चोर पकड़ा गया। रुपयोंका मालिक घबराया ! वह एक हजार रुपये लेकर सतके पास पहुँचा और उनके चरणोंपर रखकर क्षमा-प्रार्थनाएँ करने लगा। संत बड़ी नम्रता और मृदुतासे बोले'दी हुई चीज़ मैं वापस नहीं लेता।' अशोभन बादशाह हारूँ रशीदके एक लड़केने एक दिन आकर अपने पितासे कहा कि, 'फलाँ सेनापतिके लड़केने मुझे मांकी गाली दी है।' पूछनेपर मंत्रियोंमेंसे किसीने कहा-'उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।' कोई बोला-'उसकी ज़बान खिंचवा लेनी चाहिए।' किसीने मशवरा दिया'उसे फ़ौरन् सूली पर चढ़ा देना चाहिए।' आखिर हारू ने कहा-'बेटा, अगर तू अपराधीको क्षमा कर सके तब तो सबसे अच्छी बात है। क्रोधका कारण मौजूद होने पर भी जो शान्त रह सकता है वही सच्चा वीर है । और अगर तुझमें इतनी शक्ति न हो तो तू भी उसे वही गाली दे सकता है; लेकिन यह क्या तुझे शोभा देगा ? सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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