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________________ सन्त - 'क़बरिस्तान में जा और सब क़बरोंको गाली देकर आ ।' आदमीने वैसा ही किया । दूसरे दिन सन्तने उसे सब क़बरोंकी स्तुति कर आनेके लिए कहा । आदमीने इस आज्ञाका भी पालन किया । तब सन्तने उससे पूछा - 'किसीने तेरी गाली या स्तुतिके जबाब में कुछ कहा ?" 'किसीने कुछ नहीं भगवन् !' 'तू मरणशील भी सब लोगोंके बीच मान-अपमान से अलिप्त रह । यही मुक्तिमार्ग है ।' - सन्त बोले । - दोष-दर्शन गांधीजीके किसी आश्रमवासीसे कभी कोई दुराचार हो गया । किसी दूसरेने इसकी शिकायत गुमनाम पत्र लिखकर गांधीजी से की । उस दिन प्रार्थना के बाद गांधीजी गम्भीर होकर बोले- 'एक तो ऐसे विपय में गुमनाम खत लिखना ग़लत है । दोयम, किसीके पापकी ओर अंगुली उठाते वक़्त याद रखना चाहिए कि बाक़ीकी तीन अंगुलियाँ अपने दिलकी तरफ़ होती है ।' आनन्द-प्राप्ति एक धनिक अमेरिकन स्त्री स्वामी रामतीर्थ के पास आकर बोली'महाराज ! मेरा इकलौता बेटा मर गया है । मैं घोर दुखी रहती हूँ । कृपया मुझे आनन्द प्राप्तिका मार्ग बताइए ।' स्वामी राम - 'आनन्द मिल जायेगा, मगर तुम्हे उसकी क़ीमत अदा करनी पड़ेगी ।' स्त्री ——'पैसे की मेरे पास कमी नहीं । आप जो क़ीमत कहें मैं अदा करने को तैयार हूँ ।' सन्त-विनोद ――― २३
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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