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________________ स्वामी - 'बाई ! आनन्दके राज्यमें सोने-चांदी के सिक्के नहीं चलते । ' यह कहते हुए स्वामीजीने उसे एक हठो अनाथ बालक देते हुए कहा - 'लो इसे अपने पुत्र की तरह पालना ।' बाई - 'यह तो बड़ा मुश्किल काम है । स्वामीजी - 'तो आनन्द पाना भी बड़ा प्राप्ति नहीं करा सकता ।' मुझसे यह न हो सकेगा ।' मुश्किल है । मैं तुम्हें उसकी मातृ-दृष्टि शिव के पुत्र कार्तिकेयने एक बार अपने नाखूनसे एक बिल्लीके जिस्मपर लाइन बना दी । घर जाकर उन्होंने देखा कि उनकी माँ पार्वती के गालपर खसोटनेका निशान है। पूछा - ' माँ, तुम्हारे गालपर यह भद्दी लकीर कैसी है ?' जगदम्बा बोलीं- 'बेटा, तूने ही अपने नाखून से इसे बनाया है ।' 'मैंने ? मुझे तो याद नहीं आता कि मैंने ऐसा कभी किया हो !' 'तूने आज बिल्लीको नहीं खसोटा ?' 'हाँ, पर वह निशान तुम्हारे गालपर कैसे ?' माँ बोली ——मेरे प्यारे बच्चे ! सारी सृष्टि मैं ही हूँ । मेरे सिवाय संसार में और कुछ है ही नहीं । अगर तुम किसीकी हिंसा करते हो तो मेरी ही हिंसा करते हो ।' कार्तिकेय यह सुनकर दंग रह गये और तबसे हर एकको मातृ-दृष्टिसे देखने लगे । इसीलिए उन्होंने शादी भी नहीं की । उसकी हँसी ईश्वर दो मौकोंपर हँसता है । जब वैद्य रोगीको माँसे कहता है'डरो मत, माँ, मैं तुम्हारे लड़केको ज़रूर अच्छा कर दूँगा ।' ईश्वर २४ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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