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________________ तोशा एक भौंरा किसी गुबरीलेसे बोला 'तुम देखने में मुझ जैसे लगते हो, तुम्हें गोबरका आहार-विहार करते देख मुझे कष्ट होता है । मेरे बाग़में चलो। वहाँ फूलोंकी खुशबूसे तुम्हारा दिमाग़ मुअत्तर हो जायगा। फिर तुम इस गोवरकी दुनियाका कभी नाम भी न लोगे। इस नरकको छोड़ो। चलो, मैं तुम्हें अपने स्वर्गमें ले चलूं।' गबरीला सशंक होकर बोला-'ना भाई ! इस मोहनभोगसे बढ़कर भी क्या कहीं कोई दिव्यतर पदार्थ हो सकता है ? मुझे बेवकूफ़ न बनाओ । जाओ अपना काम देखो।' भौंरेने करुणावश उससे बहुत अनुरोध किया। आखिर गुबरीला रज़ामन्द हो गया। उसने तोशा लिया; और यह सोचकर कि गुलशन पसन्द तो क्या आनेवाला है आखिर लौट तो आना ही है, भौंरेके साथ हो लिया। भौंरेने अपने पुष्पोद्यानमें पहुँचकर रंग-बिरंगे, सुन्दर-सुन्दर, तरहतरहकी खुशबूवाले फूलोंकी सैर कराई। मगर गुबरोलेका उदास चेहरा प्रसन्न न हुआ। भौंरेको इसकी वजह समझते देर न लगी। आखिर बोला-'भाई ! तुमने अपने गलेमे जो गोबरकी धुंडी दबा रक्खी है, पहले उसे उगल दो; तभी फूलोंकी खुशबू ले सकोगे ।' समता एक आदमी सन्त मेकेरियसके पास आकर विनयपूर्वक बोला-'महाराज, मुझे मुक्तिका मार्ग बताइए।' २२ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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