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________________ मुमुक्षु-'घीका लोटा ही संभालेंगे !' श्रीमद्-'यह देह छाछकी तरह है, इसे आदमी सँभालता है; आत्मा घीकी तरह है, पर उसे गिरने देता है । ऐसा नादान यह इन्सान है !' हज़रत अली खलीफ़ा हज़रत अली राजकीय काग़जात देख रहे थे, कि कुछ सरदार उनसे निजी कार्यके लिए मिलने आये । हज़रत अली जिस चिराग़की रोशनी में काम कर रहे थे उसे बुझाकर और दूसरा जलाकर उनसे बात करने लगे । सरदारोंकी बातें खत्म होनेपर वे दूसरे चिराग़को बुझाकर और पहलेको जलाकर फिर कार्यव्यस्त हो गये। सरदारोंने यह माजरा देखा तो अपना कुतूहल न रोक सके । हजरतसे इसका कारण पूछा । खलीफ़ा वोले-'जब तुम आये मैं सरकारी काम कर रहा था। लेकिन निजी बातोंमें सरकारी तेल कैसे जलाया जा सकता है ?' इब्राहीम एक रईसके यहाँ कुछ प्रतिष्ठित महमान आये। रईसने अपने बाग़के रखवाले इब्राहीमको कुछ बढ़िया फल तोड़कर लानेका हुक्म दिया। मगर खाते वक़्त मालूम हुआ कि उमेसे अधिकांश फल खट्टे हैं। मालिकने इब्राहीमको झिड़कते हुए कहा-'तू ऐसे खट्टे फल कैसे ले आया । इतने दिनोंसे बाग़में रहता है तुझे यह भी नहीं मालूम कि मीठे फल कौन-से है !' इब्राहीम-'हुजूर, मैं तो आपके बाग़की रखवालीके लिए रक्खा गया हूँ। मुझे यह कैसे मालूम हो कि कौन-से फल मोठे हैं, कौन-से खट्टे ?' ये ही इब्राहीम आगे चलकर मुसलमानोंके एक महान् सन्त हुए । सन्त-विनोद २१
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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