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________________ बापूकी उदारता चम्पारन के एक गाँव में एक दिन देवीको भेटके लिए एक बकरे को फूल-मालाओंसे सजाकर जुलूसमें निकाला जा रहा था । भाग्यसे उस रोज़ गांधीजी भी उसी गाँवमें थे । जब जुलूस गांधीजीके निवास स्थानके पास से गुजरा तो गांधीजी कुतूहलवश देखने बाहर निकले । यह सब देखकर पूछने लगे 'इस बकरे को क्यों लाये हो ?' 'देवीको भोग चढ़ाने ।' 'देवीको बकरे का भोग क्यों चढ़ाते हो ?' 'देवीको प्रसन्न करनेके लिए ।' 'बकरेसे आदमी अच्छा है न ?' 'हाँ जी ।' 'तो अगर हम आदमीका भोग चढ़ायेंगे तो देवो ज़्यादा खुश होगी न ? है कोई आप लोगोंमें देवीको प्रसन्न करनेके लिए तैयार ? अगर कोई न हो तो मैं तैयार हूँ !' लोग एक दूसरे के मुँहकी तरफ़ देखने लगे ! क्या जवाब दें कुछ सूझ नहीं पड़ रहा था । गांधीजी अपना दुख दिखलाते हुए बोले- ' बेज़बान प्राणीके खून से देवी खुश नहीं होती । ऐसे अधर्मसे तो वो नाराज़ होती है । उसे प्रसन्न करना हो तो सच्चाईपर चलो, सब प्राणियोंपर दया दिखलाओ। इस बकरे को छोड़ दो । देवी तुमपर पहलेसे ज़्यादा खुश होगी ।' इसका चमत्कारिक असर हुआ । लोग बकरेको छोड़कर चल दिये । कल्याण श्रीमद् राजचन्द्र --- 'अगर तुम एक हाथमें घीका भरा लोटा और दूसरे हाथमें छाछका भरा लोटा लिये जा रहे हो और रास्तेमें किसीका धक्का लगे तो तुम किस लोटेको सँभालोगे ?” २० सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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