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________________ निशीथ-९/६०७ ऊपर कहे अनुसार किसी के भी लिए तैयार किए गए अशन, पान, खादिम, स्वादि को किसी साधु-साध्वी ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । ८९ इस प्रकार उद्देशक - ९ में बताए अनुसार किसी कृत्य करे - करवाए करनेवाले की अनुमोदना करे तो 'चातुर्मासिक परिहारस्थान अनुद्घातिक' प्रायश्चित् आता है । जिसे गुरु चौमासी प्रायश्चित् भी कहते है । उद्देशक - १० “निसीह” सूत्र के इस उदेशक में ६०८ से ६५४ इस तरह से ४७ सूत्र है । उसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं प्रायश्चित् आता है । [६०८-६११] जो साधु-साध्वी आचार्य आदि रत्नाधिक को अति कठिन, रुखा, कर्कश, दोनों तरह के वचन बोले, बुलवाए, बोलनेवाले की अनुमोदना करे तो, अन्य किसी तरह से आशातना करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६१२-६१३] जो साधु-साध्वी अनन्तकाययुक्त आहार करे, आधा कर्म (साधु के लिए किया गया आहार) खाए, खिलाए, खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६१४-११५] जो साधु-साध्वी वर्तमान या भावि के सम्बन्धी निमित्त कहे, या कहनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । कहलाए [६१६-६१७] जो साधु-साध्वी (दुसरों के) शिष्य ( शिष्या) का अपहरण करे, उसकी बुद्धि में व्यामोह पेदा करे यानि भ्रमित करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६१८-६१९] जो साधु आचार्य या उपाध्याय (साध्वी आचार्य, उपाध्याय या प्रवर्तिनी का अपहरण करे (अन्य समुदाय या गच्छ में ले जाए), उनकी बुद्धि में व्यामोह - भ्रमणा दा करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६२०] जो साधु-साध्वी बहिर्वासि (अन्य समुदाय या गच्छ में से आए हुए प्राघुर्णक) आए तब उनके आगमन की कारण जाने बिना तीन रात से ज्यादा अपनी वसति ( उपाश्रय) में निवास दे, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६२१] जो साधु-साध्वी अन्य अनुपशान्त कषायी या उसके बारे में प्रायश्चित् न करनेवाले को उसके क्लेश शान्त करने के लिए या प्रायश्चित् करना या न करने के बारे में कुछ पूछकर या बिना पूछे जैसे कि उद्घातिक को अनुद्घातिक कहे ... प्रायश्चित्त देवें, अनुद्घाति को उद्घातिक कहे,... प्रायश्चित्त देवें तो प्रायश्चित् । [६२२-६२५] जो साधु-साध्वी प्रायश्चित् की विपरीत प्ररूपणा करे या विपरीत प्रायश्चित् दान करे जैसे की उद्घातिक को अनुद्घातिक कहे .. देवे; अनुद्घातिक को उद्घातिक कहे ... देवें तो प्रायश्चित् । [६२६-६३७] जो साधु-साध्वी, कोइ साधु-साध्वी उद्घातिक, अनुद्घातिक या उभय प्रकार से है । यानि कि वो उद्घातिक या अनुद्घातिक प्रायश्चित् वहन कर रहे है वो सुनने, जाने के बाद भी, उसका संकल्प और आशय सुनने-जानने के बाद भी उसके साथ आहार करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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