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________________ ९० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [६३८-६४१] जो साधु-साध्वी सूर्य नीकलने के बाद और अस्त होने के पहले आहार-विहार आदि क्रिया करने के संकल्पवाला हो, धृति और बल से समर्थ हो, या न हो तो भी सूर्योदय या सूर्यास्त हुआ माने, संशयवाला बने, संशयित हो तब भोजन करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् और फिर यदि ऐसा माने कि सूर्य नीकला ही नहीं या अस्त हो गया है तब मुँह में - हाथ में या पात्र में जो अशन आदि विद्यमान हो उसका त्याग करे, मुख, हाथ, पात्रा की शुद्धि करे तो अशन आदि परठने के बाद भी विराधक नहीं लेकिन यदि आज्ञा उल्लंघन करके खाए-खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । ६४जो साध-साध्वी रात को या शाम को पानी या भोजन का ओडकार आए यानि उबाल आए तब उसे मुँह से बाहर नीकालने की बजाय गले में उतार दे, नीगलने का कहे, नीगलनेवाले की अनुमोदना करे तो (रात्रि भोजन दोप लगने से) प्रायश्चित् । [६४३-६४६] जो साधु-साध्वी ग्लान-बिमार हो ऐसे सुने, जानने के बाद भी उस ग्लान की स्थिति की गवेषणा न करे, अन्य मार्ग या विपरीत मार्ग में चले जाए, वैयावच्च करने के लिए उद्यत होने के बाद भी ग्लान का योग्य आहार, अनुकूल वस्तु विशेष न मिले तब दुसरे साधु, साध्वी, आचार्य आदि को न कहे, खुद कोशीश करने के बाद भी अल्प या अपर्याप्त चीज मिले तब इतनी अल्प चीज से उस ग्लान को क्या होगा “ऐसा पश्चाताप न करे, न करवाए या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।। [६४७-६४८] जो साधु-साध्वी प्रथम प्रावृट्काल यानि कि आषाढ़-श्रावण बीच में..वर्षावास में निवास करने के बाद एक गाँव से दुसरे गाँव विहार करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६४९-६५०] जो साधु-साध्वी अपर्युषणा में पर्युषणा करे, पर्युषणा में अपर्युषणा करे, पर्युषणा में पर्युषणा न करे, (अर्थात् नियत दिन में संवत्सरी न करे) न करवाए, न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६५१-६५३] जो साधु-साध्वी पर्युषण काल में (संवत्सरी प्रतिक्रमण के वक्त) गाय के रोम जितने भी बाल धारण करे, रखे, उस दिन थोड़ा भी आहार करे, (कुछ भी खाए-पीए), अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ पर्युषणा करे (पर्युषणाकरण सुनाए) करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६५४] जो साधु-साध्वी पहले समवसरण में यानि कि वर्षावास में (चातुर्मास में) पात्र या वस्त्र आदि ग्रहण करे-करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । ___ इस प्रकार उद्देशक-१०-में कहे हुए कोई कृत्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान अनुद्घातिक अर्थात् “गुरु चौमासी प्रायश्चित्" आता है । ___ उद्देशक-१०-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (उद्देशक-११) “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ६५५ से ७४६ यानि ९२ सूत्र है । उसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करने से 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं प्रायश्चित् । [६५५-६६०] जो साधु-साध्वी लोहा, ताम्र, जसत्, सीसुं, कासुं, चाँदी, सोना,
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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