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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [५८७-५८८] जो साधु-साध्वी राजा आदि के नगर प्रवेश या क्रीड़ा आदि महोत्सव के निर्गमन अवसर पर सर्वालंकार - विभूषित रानी आदि को देखने की इच्छा से एक कदम भी चलने के लिए केवल सोचे, सोच करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५८९] जो साधु-साध्वी राजा आदि के मृगया (शिकार), मछलियाँ पकड़ना, शरीर (दुसरा मतलब मुँग आदि की फली) खाने के लिए, जिस क्षेत्र में जाते हो तब रास्ते में खाने के लिए लिया गया आहार ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । ८८ [५९०] जो साधु-साध्वी राजा आदि के अन्य अशन आदि आहार में से किसी भी एक शरीर पुष्टिकारक, मनचाही चीज देखकर उसकी जो पर्षदा खड़ी न हुई हो (यानि कि पूरी न हुई हो), एक भी आदमी वहाँ से न गुजरा हो, सभी वहाँ से चले गए न हो उसके अशन आदि आहार ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्, दुसरी बात ये भी जानना राजा आदि कहाँ निवास करते है । उस संबंध से जो साधु-साध्वी (जहाँ राजा का निवास हो), उसके पास ही का घर, प्रदेश, पास की शुद्ध भूमि में विहार, स्वाध्याय, आहार, मलमूत्र, परिष्ठापन, सत्पुरुष आचरण न करे वैसा कृत्य, अश्लिल कृत्य, साधु पुरुष को योग्य न हो वैसी कथा कहे, इसमें से किसी आचरण खुद करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५९१-५९६] जो साधु-साध्वी राजा आदि को दुसरे राजा आदि पर विजय पाने के लिए जाता हो, वापस आता हो, वापस आने के वक्त अशन, पान, खादिम स्वादिम ग्रहण करने जाए भेजे या जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५९७] जो साधु-साध्वी राजा आदि के महाभिषेक के अवसर पर वहाँ प्रवेश करे या बाहर नीकले, वैसा दुसरों के पास करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५९८] राजा, ग्रामपति, शुद्धवंशीय, कुल परम्परा से अभिषेक पाए हुए (राजा आदि) के चंपा, मथुरा, वाराणसी, सावत्थी, साकेत, कांपिल्य, कौशाम्बी, मिथिला, हस्तिनापुर, राजगृही ये दस बड़ी राजधानी) कहलाती है । मानी जाती है । प्रसिद्ध है । वहाँ एक महिने में दोतीन बार जो साधु-साध्वी जाए या वहाँ से बाहर नीकले, दुसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५९९-६०७ ] जो साधु-साध्वी, राजा आदि के अशन आदि आहार कि जो दुसरों के निमित्त से जैसे कि, क्षत्रिय, राजा, खंड़िया राजा, राजसेवक, राजवंशज के लिए किया हो उसे ग्रहण करे, ( उसी तरह से ).. राजा आदि के नर्तक, कच्छुक, ( रज्जुनर्तक), जलनर्तक, मल्ल, भाँड़, कथाकार, कुदक, यशोगाथक, खेलक, छत्रधारक, अश्व, हस्ति, पाड़ा, बैल, शेर, बकरे, मृग, कुत्ते, शुकर, सूवर, चीड़िया, मुर्वे, बंदर, तितर, वर्तक, लावक, चील्ल, हंस, मोर, तोता (आदि) को पोषने के लिए बनाया गया, अश्व या हस्ति पुरुषक अश्व या हस्ति के परिमार्जक, अश्व या हस्ति आरोहक सचिव आदि, पगचंपी करनेवाला, मालीश कर्ता, उद्वर्तक, मार्जनकर्ता, मंड़क, छत्रधारक, चामर धारक, आभरण भाँड़ के धारक, मंजुषा धारक, दीपिका धारक, धनुर्धारक, शस्त्रधारक, भालाधारक, अंकुशधारक, खसी किए गए अन्तःपुररक्षक, द्वारपाल, दंड़रक्षक, कुब्ज, किरातिय, वामन, वक्रकायी, बर्बर, बकुशिल, यावनिक, पल्हविक, इसिनिक, लासिक, लकुशिक, सिंहाली, पुलिन्दी, मुरन्ड़ी, पक्कणी, भिल्ल, पारसी (संक्षेप में कहा जाए तो किरात से लेकर पारस देश में पेदा होनेवाले यह सभी राजसेवक )
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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