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________________ निशीथ - २/११७ प्रायश्चित् शब्द भी योजित हुआ है । उद्देश - २ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण उद्देशक- ३ ७७ " निसीह" सूत्र के इस तीसरे उद्देशक में ११८ से १९६ इस प्रकार कुल ७९ सूत्र है । जिसमें बताए हुए दोप में किसी भी दोप का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'उघातियं' नाम का प्रायश्चित् आता है जिसे लघुमासिक प्रायश्चित् रूप से पहचाना जाता है । [११८-१२९] जो साधु-साध्वी धर्मशाला, उपवन, गाथापति का कुल या तापस के निवास स्थान में रहे अन्यतीर्थिक या गृहस्थ ऐसे किसी एक पुरुष, कई पुरुप या एक स्त्री, कई स्त्रीयों के पास १. दीनता पूर्वक (ओ भाई ! ओ बहन मुजे कोई दे उस तरह से ) २. कुतुहल से, ३. एक बार सामने से लाकर दे तब पहले 'ना' कहे, फिर उसके पीछे-पीछे जाकर या आगे-पीछे उसके पास खड़ा रहकर या बक-बक करके (जैसे कि ठीक है अब तुम ले आए हो तो, रख ले ऐसा बोलना ) इन तीनों में से किसी भी तरह से अशन-पान - खादिम स्वादिम इन चार तरह के आहार में से कुछ भी याचना करे या माँगे, याचना करवाए या उस तरह से याचना करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३०] जो साधु-साध्वी गृहस्थ कुल में अशन-पान आदि आहार ग्रहण करने की इच्छा से प्रवेश करे मतलब भिक्षा के लिए जाए तब गृहस्वामी निपेध करे तो भी दुसरी वार उसके कुल घर में आज्ञा लिए बिना प्रवेश करे-करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३१] जो साधु-साध्वी संखड़ी अर्थात् जहाँ कईं लोग भोजन के लिए इकट्ठे हुए हो यानि कि भोजन समारम्भ हो (छ काय जीव विराधना की विशेष संभावना होने से ) उस जगह अशन, पान, खादिम, स्वादिम को लेने के लिए जाए, भिक्षा के लिए जाए, दुसरों को भेजे या जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३२] जो साधु-साध्वी गृहस्थकुल- घर में भिक्षा के लिए जाए तब तीन घर (कमरे ) से ज्यादा दूर से लाए गए असन, पान, खादिम, स्वादिम दे (वहोरावे) तब जो कोई वो अशन आदि ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३३ - १३८] जो साधु-साध्वी अपने पाँव के ( मैल निवारण या शोभा बँढाने के लिए) एक या बारबार प्रमार्जन करे, साफ करे, पाँव की मालिश करे, तेल, घी, मक्खन या चरबी से मर्दन करे, लोघ्र (नामका एक द्रव्य), कल्क (कई द्रव्य मिश्रित द्रव्य), चूर्ण (गन्धदार द्रव्य) वर्ण (अबील आदि द्रव्य) । कमल चूर्ण, उसके द्वारा मर्दन करे, अचित्त किए गए ठंड़े या गर्म पानी से प्रक्षालन करे उससे पहले किसी द्रव्य से लीपकर सूखाने के लिए फूँक मारे या रंग दे यह सब करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।। [१३९-१४४] जो साधु-साध्वी अपनी काया- यानि कि शरीर को एक या ज्यादा बार प्रमार्जन करे, मालीश करे, मर्दन करे, प्रक्षालन करे, रंग दे ( यह सब सूत्र १३३ से १३८ की तरह समज लेना) तो प्रायश्चित् । [१४५ - १५० ] जो साधु-साध्वी अपने व्रण जैसे कि कोढ़, दाद, खुजली, गंडमाल,
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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