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________________ ७६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद उस घर की गवेषणा - ढूँढे बिना इस तरह से जानने, पूछने या गवेपणा करने के बिना ही आहार ग्रहण करने के लिए वो कुल घर में प्रवेश करे- करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१०७ ] जो साधु-साध्वी श्रावक के परिचय रूप निश्रा का सहारा लेकर असन, पान खादिम, स्वादिम समान चार तरह के आहार में से किसी भी तरहका आहार, विशिष्ट वचन बोलकर याचना करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । यहाँ निश्रा यानि परिचय अर्थ किया । जिसमें पूर्व का या किसी रिश्ते का इस्तेमाल करके स्वजन की पहचान करवाके उसके द्वारा कुछ भी याचना करना । [१०८] जो साधु-साध्वी ऋतुबद्धकाल सम्बन्धी शय्या, संथारा (आदि) का पर्युषण के बाद यानि कि चातुर्मास के बाद शर्दी-गर्मी आदि ) शेषकाल में उल्लंघन करे अर्थात् शेषकाल के लिए याचना की गई शय्या, संथारा, पाट पाटले आदि उसकी समय मर्यादा पूरी होने के बाद भी इस्तेमाल करे, करवाए या उसकी अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । यहाँ संवत्सरी से लेकर ७० दिन के कल्प को लेकर बताया है । यानि संवत्सरी पूर्वे विहार चालू हो लेकिन पर्युषण से ७० दिन की स्थिरता करनी होने से उससे पहले ग्रहण की शय्या संथारा परत करना ऐसा मतलब हो । लेकिन वर्तमानकाल की प्रणालि मुताबिक ऐसा अर्थ हो शके कि शेषकाल मतलब शर्दी-गर्मी में ग्रहण की शय्या आदि वर्षाऋतु से पहले उसके दाता को परत करना या पुनः इस्तेमाल के लिए परवानगी माँगना । [१०९] जो साधु-साध्वी वर्षाऋतु में उपभोग करने के लिए लाया गया शय्या, संथारा, वर्षाऋतु बीतने के बाद दश रात्रि तक उपभोग कर शके, लेकिन उस समय मर्यादा का उल्लंघन करे, करवाए या अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् । [११०] जो साधु-साध्वी वर्षाकाल या शेषकाल के लिए याचना करके लाई हुई शय्या संथारा वर्षा से भीगा हुआ देखने-जानने के बाद उसे न खोले, प्रसारकर सूख जाए उस तरह से न रखें, न रखवाए या उस तरह से शय्यादि खुले न करनेवाले की अनुमोदना करे । [१११-११३] जो साधु-साध्वी प्रातिहारिक यानि कि श्रावक से वापस देने का कहकर लाया गया,... सागारिक यानि कि शय्यातर आदि गृहस्थ के पास से लाया हुआ शय्यासंथारा या दोनों तरह से शय्यादि दुसरी बार परवानगी लिए बिना, दुसरी जगह, उस वसति के बाहर खुद ले जाए, दुसरों को ले जाने के लिए प्रेरित करे या ले जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । [११४-११६] जो साधु-साध्वी प्रातिहारिक यानि वापस देने लायक या शय्यातर आदि गृहस्थ से लाकर या दोनों तरह के शय्या संथारा (आदि) जिस तरह से लाया हो उसी तरह से वापस न दे, ठीक किए बिना, वापस करे बिना, विहार करे, खो जाए या ढूँढे नहीं तो प्रायश्चित् । [११७] जो साधु-साध्वी अल्प या कम मात्रा में भी उपधिवस्त्र का पड़िलेहण न करे, न करवाए या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । यहाँ दुसरे उद्देशक में जो दोष बताए उसमें से किसी भी दोष खुद सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो उसे 'मासियं परिहारठाणंं उग्धातियं' प्रायश्चित् आए जिसके लिए लघुमासिक
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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