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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद लगने से या गिरने से होनेवाले झखम आदि का (सूत्र १३३ से १३८ में बताने के अनुसार) प्रमार्जन, मर्दन, प्रक्षालन, रंगना, मालीश आदि करे, करवाए या अनुमोदन करे । [१५१-१५६] जो साधु-साध्वी अपने शरीर में रहे गुमड़, फोल्ले, मसा, भगंदर आदि व्रण किसी तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा एक या कईं बार छेदन करे, छेदन करके खून नीकाले या विशुद्धिसफाई करे, लहूँ या पानी नीकलने के बाद अचित ऐसे शीत या उष्ण जल से एक या कईं बार प्रक्षालन करे, उस तरह से प्रक्षालन करने के बाद एक या कईं बार उस पर लेप या मल्हम लगाए, उसके वाद तेल, घी, मक्खन या चरबी से एक या कई बार मर्दन करे, उसके बाद किसी भी तरह के धूप से वहाँ धूप करे या सुगंधी करे । इसमें से किसी भी दोष का सेवन करे, दुसरों से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । [१५७] जो साधु-साध्वी अपनी गुदा में या नाभि में रहे क्षुद्र या छोटे जीव कृमि आदि को ऊँगली डालकर बाहर नीकाले, नीकलवाए या नीकालनेवाले की अनुमोदना करे । [१५८] जो साधु-साध्वी अपने बढ़े हुए नाखून के आग के हिस्से को काटे, शोभा बँढ़ाने के लिए संस्कार करे, करवाए या अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् । ७८ [१५९-१६३] जो साधु-साध्वी अपने बढ़े हुए जाँघ के, गुह्य हिस्से के, रोमराज के, बगलके, दाढ़ी-मूँछ आदि के बाल काटे, कटवाए, काटनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१६४-१६६ ] जो साधु-साध्वी अपने दाँत एक बार या अनेकबार (नमक-क्षार आदि से) घिसे, धुए, मुँह के वायु से फूँक मारकर या रंगने के द्रव्य से रंग दे यह काम खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१६७-१७२] जो साधु-साध्वी अपने होठ एक बार या बार-बार प्रमार्जन करे, धोए, परिमर्दन करे, तेल, घी, चरबी या मक्खन से मर्दन - मालीश करे, लोध्र (नामक द्रव्य, कल्क (कई द्रव्यमिश्रित द्रव्य विशेष), चूर्ण (गन्धदार द्रव्य) वर्ण (अबिल आदि द्रव्य) या पद्म चूर्ण से मर्दन करे, अचित्त ऐसे ठंड़े या गर्म पानी से धोए...रंग दे, यह कार्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१७३-१७४] जो साधु-साध्वी अपने लम्बे बढ़े हुए मश्रू-मूँछ के बाल, आँख की भँवर के बाल, काटे, शोभा बढ़ाने के लिए ठीक करे, दुसरों के पास ऐसा करवाए या ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१७५-१८०] जो साधु-साध्वी अपनी आँख को एकबार या कईं बार (सूत्र १६७से १७२ में होठ के बारे में बताया उस तरह ) धुए, परिमर्दन करे, मालीश करे, मर्दन करे, प्रक्षालन करे, रंग दे, यह काम खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१८१-१८२] जो साधु-साध्वी अपने लम्बे बढ़े भ्रमर के बाल, बगल के बाल कटवाए या शोभा बढ़ाने के लिए ठीक करे, दुसरों के पास वैसा करवाए या अनुमोदना करे । [१८३] जो साधु-साध्वी अपने आँख, कान, दाँत, नाखून का मैल नीकाले, नीकलवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । [१८४] जो साधु-साध्वी अपने शरीर का पसीना, मैल, पसीना और धूल से ढ़ंग बने कचरे का थर, या लहू के भींगडे आदि समान किसी भी कचरे को नीकाले या विशुद्ध करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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