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________________ व्यवहार-७/१७८ १३५ [१७८-१७९] तीन साल के दीक्षा पर्यायवाले साधु को तीस साल के दीक्षावाले साध्वी को उपाध्याय के रूप में अपनाना कल्पे, पाँच साल के पर्यायवाले साधु को ६० साल के पर्यायवाले साध्वी को उपाध्याय के रूप में अपनाना कल्पे । [१८०] एक गाँव से दुसरे गाँव विहार करते साधु-साध्वी शायद काल करे, उनके शरीर को किसी साधर्मिक साधु देखे तो वो साधु उस मृतक को वस्त्र आदि से ढँककर एकान्त, अचित्त, निर्दोष, स्थंडिल भूमि देखकर, प्रमार्जना करके परठना कल्पे यदि वहाँ कोई उपकरण हो तो वो आगार सहित ग्रहण करे दुसरी बार आज्ञा लेकर वो उपकरण रखना या त्याग करने का कल्पे । [१८१-१८२] सज्जातर उपाश्रय कीराये पे दे या बेच दे लेकिन लेनेवाले को बोले कि इस जगह में कुछ स्थान पर निर्ग्रन्थ साधु बँसते है । उस अलावा जो जगह है वो किराये पे या बिक्री में देंगे तो वो सज्जातर के आहार- पानी वहोरना न कल्पे यदि देनेवाले ने कुछ न कहा हो लेकिन लेनेवाला ऐसा कहे कि इतनी जगह में साधु भले विचरण करे तो लेनेवाले के आहार- पानी न कल्पे यदि देनेवाला - लेनेवाला दोनों कहे तो दोनों के आहार- पानी न कल्पे । [१८३] यदि कोई विधवा पिता के घर में रहती हो और उसकी अनुमति लेने का अवसर आए तो उसके पिता, पुत्र या भाई दोनो की आज्ञा लेकर अवग्रह मांगना चाहिए । [१८४] पंथ के लिए यानि रास्ते में भी अवग्रह की अनुज्ञा लेना । जैसे कि वृक्ष आदि की, वहाँ रहे मुसाफिर की । [१८५-१८६] राजा मर जाए तब राज में फेरफार हुआ है ऐसा माने । लेकिन पहले राजा की दशा - प्रभाव तूटे न हो, भाई - हिस्सा बँटा न हो, अन्य वंश के राजा का विच्छेद न हुआ हो, दुसरे राजा ने अभी उस देश का राज ग्रहण न किया हो तब तक पूर्व की अनुज्ञा के मुताबिक रहना कल्पे, लेकिन यदि पूर्व के राजा का प्रभाव तूट गया हो, हिस्से का बँटवारा, राज विच्छेद, अन्य से ग्रहण आदि हुए हो तो फिर से नए राजा की आज्ञा लेकर रहना कल्पे । इस प्रकार मैं ( तुम्हें ) कहता हूँ । उद्देशक - ७ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण उद्देशक- ८ - [१८७] जिस घर के लिए वर्षावास रहा । उस घर में, बाहर के प्रदेश में या दूर के अन्तर में जो शय्या - संथारा मिला हो वो वो मेरे है ऐसा शिष्य कहे लेकिन यदि स्थविर आज्ञा दे तो लेना कल्पे, यदि आज्ञा न दे तो लेना न कल्पे । उसी तरह आज्ञा मिले तो ही रातदिन वो शय्या - संथारा लेना कल्पे । [१८८-१८९] वो साधु हल्के उठाकर एक-दो या तीन दिन के मार्ग में के लिए पाए, उसी तरह वर्षावास के लिए प्राप्त करे । श्याय - संथारा की गवेषणा करे, ये वो एक हाथ से ले जाने के लिए समर्थ हो ऐसा संथारा शर्दी-गर्मी [१९०] वो साधु कम वजन के शय्या संथारा की गवेषणा करे, ये वो एक हाथ से उठाकर एक, दो, तीन, चार, पाँच दिन के दूर के रास्ते के लिए उठाने को समर्थ हो जिससे वो शय्या - संथारा मुझे बढ़ती वर्षाऋतु में काम लगे ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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