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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [१९१] जो स्थविर स्थिरवास रहे उसे दंड़ी, पात्रा, सर ढँकने का वस्त्र, पात्रक, लकड़ी, वस्त्र, चर्मखंड़ रखना कल्पे । यदि स्थविर अकेले हो तब यह सभी उपकरण कहीं रखकर गृहस्थ के घर आहार ग्रहण के लिए नीकले या प्रवेश करे । उसके बाद वापस आने पर जिसके वहाँ उपकरण रखे हो उसकी आज्ञा लेकर वो उपकरण भुगते या त्याग करे । १३६ [१९२-१९४] साधु-साध्वी को पाड़िहारिक वापस करने के उचित या शय्यातर के पास से शय्या - संथारा पुनः लेकर अनुज्ञा लिए बिना बाहर जाना न कल्पे, आज्ञा लेकर जाना कल्पे | [१९५-१९७] साधु-साध्वी को पाड़िहारिक या शय्यातर के पास से शय्या - संथारा पहले लिया हो वो उन्हें सौंपकर दुसरी दफा उनकी आज्ञा बिना रखना न कल्पे । आज्ञा लेकर रखना कल्पे, या पहले ग्रहण करके फिर आज्ञा लेना भी न कल्पे, पूर्व आज्ञा लेकर फिर ग्रहण करना कल्पे । यदि ऐसा माने कि यहाँ वाकई मे प्रातिहारिक शय्या - संथारा सुलभ नहीं है । तो पहले से ही ग्रहण कर ले फिर अनुमति मांगे तब शायद पाड़िहारिक के साथ शिष्य का झगड़ा हो तो स्थविर उसे रोके और कहे कि तुम कोप मत करो । तुम उनकी वस्ति ग्रहण करके रहे हो और कठिन वचन भी बोलते हो ऐसे दोनों कार्य करने योग्य नहीं है । उस तरह मीष्ट वचन से दोनों को शान्त करे । [१९८-२००] साधु गृहस्थ के घर आहार के लिए जाए, या बाहर स्थंडिल या स्वाध्याय भूमि में जाए, या एक गाँव से दुसरे गाँव विचरते हो वहाँ अल्प उपकरण भी गिर जाए । उसे कोई साधर्मिक साधु देखे, गृहस्थ थकी वो चीज ग्रहण करना कल्पे । वो चीजे लेकर वो साधर्मिक आपसी साधु को कहे कि हे आर्य ! यह उपकरण किसका है तुम जानते हो ? साधु कहे कि हा, जानता हूँ वो उपकरण मेरा है । तो उसे दे । यदि ऐसा कहे कि हम नही जानते तो लानेवाले साधु खुद न भुगते, न दुसरे को दे लेकिन एकान्त-निर्दोष- थंडिल भूमि में परठवे । [२०१] साधु-साध्वी को अधिक पात्र आपस में ग्रहण करना कल्पे । यदि वो पात्र मैं कसी को दूंगा, मैं खुद ही रखूँगा या दुसरे किसी को भी देंगे तो जिनके लिए उन्हें लिया हो उने पूछे या न्यौता दिए बिना आपस में देना न कल्पे, लेकिन जिनके लिए लिया है उन्हें पूछकर, निमंत्रीत करके देना कल्पे । [२०२] मुर्गे के अंड़े जितने आठ नीवाले यानि कि आठ कवल आहार जो करे उस साधु को अल्प- आहारी बताए । बारह कवल आहारी साधु अपार्ध उणोदरी करते है, सोलह कवल आहारी को अर्ध उणोदरी, चौबीस कवल आहारी को पा उणोदरी, ३१ कवल आहारी को किंचित् उणोदरी, ३२ कवल आहारी को प्रमाण प्राप्त आहारी बताए उस तरह से एक भी कवल आहार कम करनेवाले को प्रकाम भोजी न कहे लेकिन उणोदरी कहा । उद्देशक- ९ [२०३ - २०६] सागारिक शय्यातर के वहाँ कोई अतिथि घर में भोजन कर रहा हो या बाहर खा रहा हो तो उनके लिए आहार -पानी किए हो वो आहार शय्यातर उसे दे, पाड़िहारिक वापस देने की शर्त से बचा हुआ आहार वो व्यक्ति शय्यातर को दे तो उसमें से साधु को दिया
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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