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________________ १३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद (उद्देशक-७) [१६०-१६२] जो साधु-साध्वी सांभोगिक है यानि एक समाचारी वाले है वहाँ साधु को पूछे बिना साध्वी खंड़ित, सबल, भेदित या संक्लिष्ट आचारखाले किसी अन्य गण के साध्वी को उसे पापस्थानक की आलोचना प्रतिक्रमण, प्रायश्चित् आदि किए बिना उनकी शाता पूछना, वांचना देना, एक मंडलीवाले के साथ भोजन करना, साथ रहना, थोड़े वक्त या हमेशा के लिए किसी पदवी देना आदि कुछ न कल्पे, यदि वो आलोचना आदि सब करे तो गुरु की आज्ञा के बाद उनकी साता पूछना यावत् पदवी देना या धारण करना कल्पे, इस तरह के साध्वी को भी यदि वो साध्वी को साथ रखना स्व समुदाय के साध्वी न चाहे तो उनके गच्छ में वापस जाना चाहिए । [१६३] यदि कोई साधु-साध्वी समान समाचारीवाले है उनमें से किसी साधु को परोक्ष तरह या दुसरे स्थानक में प्रत्यक्ष बताए बिना विसंभोगी यानि मांडली बाहर करना न कल्पे । उसी स्थानक में प्रत्यक्ष उनके सन्मुख कहकर विसंभोगी करना कल्पे । सन्मुख हो तब कहे कि हे आर्य ! इस कुछ कारण से अब तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार न करूँ । ऐसा कहकर विसंभोगी करना । यदि वो अपने पाप कार्य का पश्चाताप करे तो उसे विसंभोगी करना न कल्पे । लेकिन यदि पश्चाताप न करे तो उसे मुँह पर कहकर विसंभोगी करे । [१६४] यदि कोई साधु-साध्वी समान समाचारीवाले है उनमें से किसी साध्वी को दुसरे साध्वी ने प्रत्यक्ष संभोगीपन में से विसंभोगीपन यानि कि मांडली व्यवहार बंध करना न कल्पे । परोक्ष तरह अन्य के द्वारा कहकर विसंभोगीपन करना कल्पे । अपने आचार्यउपाध्याय को ऐसा कहे कि कुछ कारण से अमुक साध्वी के साथ मांडली व्यवहार बन्ध किया है । अब यदि वो साध्वी पश्चाताप करे तो बताकर व्यवहार बन्ध कर देना न कल्पे । यदि वो पश्चाताप न करे तो विसंभोगी करना कल्पे । [१६५-१६८] साधु या साध्वी को अपने खुद के हित के लिए किसीको दीक्षा देना, मुँड़ करना, आचार शीखलाना, शीष्यत्त्व देना, उपस्थापन करना, साथ रहना, आहार करना या थोड़े दिन या हमेशा के लिए पदवी देना न कल्पे, दुसरों के लिए दीक्षा देना आदि सब काम करना कल्पे । [१६९-१७०] साध्वी को विकट दिशा में विहार करना या धारण करना न कल्पे, साधु को कल्पे । __ [१७१-१७२] साधु को विकट देश के लिए कठिन वचन आदि का प्रायश्चित लेकर वहाँ बैठे क्षमापना करना न कल्पे, साध्वी को कल्पे । [१७३-१७४] साधु-साध्वी को विकाल में स्वाध्याय करना न कल्पे, यदि साधु की निश्रा-आज्ञा हो तो साध्वी को विकाल में भी स्वाध्याय करना कल्पे । [१७५-१७६] साधु-साध्वी को असज्झाय में स्वाध्याय करना न कल्पे, सज्झाय में (स्वाध्यायकाले) स्वाध्याय करना कल्पे । [१७७] साधु-साध्वी को अपनी शारीरिक असज्झाय में सज्झाय करना न कल्पे अन्योन्य वांचना देना कल्पे ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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