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________________ निशीथ - १८/१२७२ १०३ [१२७२] जो साधु-साध्वी, नाँव-नौका को अपनी ओर लाने की प्रेरणा करे, चलाने के लिए कहे या दुसरों से चलाई जाती नाँव को रस्सी या लकड़े से पानी से बाहर नीकाले ऐसा खुद करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२७३] जो साधु-साध्वी नाँव को हलेसा, वांस की लकड़ी, के द्वारा खुद चलाए, दुसरों से चलवाए या चलानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२७४ - १२७५] जो साधु-साध्वी नाँव में भरे पानी को नौका के सम्बन्धी पानी नकालने के बरतन से आहारपात्र से या मात्रक - पात्र से बाहर नीकाले, नीकलवाए या अनुमोदना करे, नाँव में पड़े छिद्र में से आनेवाले पानी को, ऊपर चड़ते हुए पानी से डूबती हुई नाँव को बचाने के लिए हाथ, पाँव, पिपल के पत्ते, घास, मिट्टी, वस्त्र या वस्त्रखंड से छिद्र बन्द करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२७६-१२९१] जो साधु-साध्वी नौका विहार करते वक्त नाँव में हो, पानी में हो, कीचड़ में हो या किनारे पर हो उस वक्त नाँव में रहे पानी में रहे, कीचड़ में रहे या किनारे पर रहा किसी दाता असन आदि वहोरावे और यदि किसी साधु-साध्वी अशन, पान, खादिम, स्वादिम ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । यहाँ कुल १६ सूत्र द्वारा १६ - भेद बताए है । जिस तरह नाँव में रहे साधु को नाँव में, जल में, कीचड़ में या किनारे पर रहे दाता अशन आदि दे तब ग्रहण करना उस तरह से पानी में रहे, कीचड़ में रहे, किनारे पर रहे साधु-साध्वी को पहले बताए गए उस चारों भेद से दाता दे और साधु-साध्वी ग्रहण करे | ) [१२९२-१३३२] जो साधु-साध्वी वस्त्र खरीद करे, करवाए या खरीद करके आए हुए वस्त्र को ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे ( इस सूत्र से आरम्भ करके) जो साधु-साध्वी यहाँ मुझे वस्त्र प्राप्त होगा वैसी बुद्धि से वर्षावास चातुर्मास रहे, दुसरों को रहने के लिए कहे या रहनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित । [नोंध :- उद्देशक - १४ में कुल ४१ सूत्र है वहाँ पात्र के सम्बन्ध से जो विवरण किया गया है उस प्रकार उस ४१ सूत्र के लिए समज लो, फर्क केवल इतना कि यहाँ पात्र की जगह वस्त्र समजना] इस प्रकार उद्देशक - १५ - में बताए किसी भी दोष का जिसको साधु-साध्वी खुद सेवन करे, दुसरों के पास सेवन करवाए या उस दोष का सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो उसे चातुर्मासिक परिहारस्थान् उद्घातिक नाम का प्रायश्चित् आता है, जिसे “लघु चौमासी" प्रायश्चित् भी कहते है । उद्देशक - १८ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण उद्देश - १९ " निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में १३३३ से १३६९ यानि कि कुल ३७ सूत्र है । इसमें बताए गए किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को चाऊम्मासियं परिहारट्ठाणं उघातियं नाम का प्रायश्चित् आता है । [१३३३-१३३६] जो साधु-स धू-साध्वी खरीदके, उधार ले के, विनिमय करके या छिनकर
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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