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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद करनेवाले की १०४ लाए गए प्रासु या निर्दोष ऐसे अनमोल औषध को ग्रहण करे, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । ( नोंध :-- उद्देशक - १४ से सूत्र ८६३ से ८६६ में इन चारों दोष का विशद् विवरण किया गया है । इस प्रकार समज लेना, फर्क केवल इतना कि वहाँ पात्र खरीदने के लिए यह दोष बताए है जो यहाँ औषध के लिए समजना । ) करवाए, [१३३७-१३३९] जो साधु-साध्वी प्रासुक या निर्दोष ऐसे अनमोल औषध ग्लान के लिए भी तीन मात्रा से ज्यादा लाए, ऐसा औषध एक गाँव से दुसरे गाँव ले जाते हुए साथ रखे, ऐसा औषध खुद बनाए, बनवाए या कोई सामने से बनाकर दे तब ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । [१३४०] जो साधु-साध्वी चार संध्या-सूर्योदय, सूर्यास्त, मध्याह्न और मध्यरात्रि के पहले और बाद का अर्ध-मुहूर्त काल इस वक्त स्वाध्याय करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३४१-१३४२] जो साधु-साध्वी कालिक सूत्र की नौ से ज्यादा और दृष्टिवाद की २१ से ज्यादा पृच्छा यानि कि पृच्छनारूप स्वाध्याय को अस्वाध्याय या तो दिन और रात के पहले या अंतिम प्रहर सिवा के काल में करे, करवाए, अनुमोदना करे । [ १३४३ - १३४४] जो साधु-साध्वी इन्द्र, स्कन्द, यक्ष, भूत उन चार महामहोत्सव और उसके बाद की चार महा प्रतिपदा में यानि यैत्र, आषाढ, आसो और कार्तिक पूर्णिमा और उसके बाद आनेवाले एकम में स्वाध्याय करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे । [१३४५] जो साधु-साध्वी चार पोरिसि यानि दिन और रात्रि के पहले तथा अन्तिम प्रहर में (जो कालिक सूत्र का स्वाध्यायकाल हैं उसमें) स्वाध्याय न करे, न करने के लिए कहे या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३४६ - १३४७] जो साधु-साध्वी शास्त्र निर्दिष्ट या अपने शरीर के सम्बन्धी होनेवाले अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३४८-१३४९] जो साधु-साध्वी नीचे दिए गए सूत्रार्थ की वांचना दिए बिना सीधे ही ऊपर के सूत्र को वांचना दे यानि शास्त्र निर्दिष्ट क्रम से सूत्र की वाचना न दे, नवबंभचेर यानि आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन की वांचना दिए बिना सीधे ही ऊपर के यानि कि छेदसूत्र या दृष्टिवाद की वांचना दे, दिलाए, देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३५०-१३५५] जो साधु-साध्वी अविनित को, अपात्र या अयोग्य को और अव्यक्त यानि कि १६ साल का न हुआ हो उनको वाचना दे, दिलाए, अनुमोदना करे और विनित को, पात्र या योग्यतावाले को और व्यक्त यानि सोलह साल के ऊपर को वांचना न दे, न दिलाए, न देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३५६] जो साधु-साध्वी दो समान योग्यतावाले हो तब एक को शिक्षा और वांचना दे और एक को शिक्षा या वाचना न दे। ऐसा खुद करे, दुसरों से करवाए, ऐसे करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१३५७] जो साधु-साध्वी, आचार्य-उपाध्याय या रत्नाधिक से वाचना दिए बिना या उसकी संमति के विना अपने आप ही अध्ययन करे, करने के लिए कहे या करनेवाले की
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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