SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद संकोटक, रुसुक, हँकुण या उस तरह के अन्य किसी भी तंतुवाद्य, ताल, काँसताल, लित्तिका, गोधिका, मकरिका, कच्छवी, महतिका, सनालिका या उस तरह के अन्य घन शब्द करनेवाले वाद्य, शंख, बाँसूरी, वेणु, खरमुखी, परिली चेचा या ऐसे अन्य तरह के झुषिर वाद्य । (यह सब सुनने की जो इच्छाप्रवृत्ति) [१२४७-१२५८] जो साधु-साध्वी दुर्ग, खाई यावत् विपुल अशन आदि का आदानप्रदान होता हो ऐसे स्थान के शब्द को कान से श्रवण करने की इच्छा या संकल्प प्रवृत्ति करे, करवाए, अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् । (उदेशक-१२ में सूत्र ७६३ से ७७४ उन बारह सूत्र में इन सभी तरह के स्थान की समज दी है । इस प्रकार समझ लेना । फर्क केवल इतना कि बारहवे उद्देशक में यह वर्णन चक्षु इन्द्रिय सम्बन्ध में था यहां उसे सुनने की इच्छा या संकल्पना दोष समान मानना । [१२५९] जो साधु-साध्वी इहलौकिक या पारलौकिक, पहले देखे या अनदेखे, सुने हुए या अनसुने, जाने हुए या अनजान, ऐसे शब्द के लिए सज्ज हो रागवाला हो, वृद्धिवाला हो या अति आसक्त होकर जो सज्ज हुआ है उसकी अनुमोदना करे । इस प्रकार उद्देशक-१७-में बताए गए किसी भी दोष का जो किसी साधु-साध्वी खुद सेवन करे, दुसरों से सेवन करवाए, ये दोप सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो उसे चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक नाम का प्रायश्चित् आता है जो ‘लघु चौमासी' प्रायश्चित् नामसे भी पहचाना जाता है । (उद्देशक-१८) “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में १२६० से १३३२ यानि कि कुल ७३ सूत्र है । जिसमें कहे गए किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं' नाम का प्रायश्चित् आता है । [१२६०] जो साधु-साध्वी अति आवश्यक प्रयोजन बिना नौका-विहार करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२६१-१२६४] जो साधु-साध्वी दाम देकर नाँव खरीद करे, उधार लेकर, परावर्तीत करके या छीनकर उस पर आरोहण करे यानि खरीदना आदि के द्वारा नौका विहार करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । (उद्देशक-१४ के सूत्र ८६३ से ८६६ में इन चार दोष का वर्णन किया है इस प्रकार समज लेना, फर्क इतना कि वहाँ पात्र के लिए खरीदना आदि दोष बताए है वो यहाँ नौकानाँव के लिए समज लेने ।) [१२६५-१२७१] जो साधु-साध्वी (नौका-विहार के लिए) नाव को स्थल में से यानि किनारे से पानी में, पानी में से किनारे पर मँगवाए, छिद्र आदि कारण से पानी से भरी नाँव में से पानी बाहर नीकाले, कीचड़ में फँसी नाव वाहर नीकाले, आधे रास्ते में दुसरा नाविक मुजे लेने आएगा वैसा कहकर यानि बड़ी नाँव में जाने के लिए छोटी नाँव में बैठे, उर्ध्व एक योजन या आधे योजन से ज्यादा लम्बे मार्ग को पार करनेवाली नौका में विहार करेइन सभी दोष का सेवन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy