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________________ निशीथ - १७/११७५ के शरीर के इस प्रकार परिकर्म करवाए ऐसा समजना है और सूत्र ११७६ से १२२९ में किसी साधु इस प्रकार "साध्वी के शरीर का परीकर्म करवाए" ऐसा समजना | [११७६-१२२९] जो किसी साधु अन्य तीर्थिक या गृहस्थ को कहकर (ऊपर दी गई नोध के मुताबिक ) साध्वी के पाँव प्रक्षालन आदि शरीर - परिकर्म करवाए, दुसरों को ऐसा करने के लिए कहे या ऐसा करवानेवाले साधु की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । १०१ [१२३०-१२३१] जो किसी साधु समान सामाचारीवाले अपनी वसति में आए हुए साधु को या साध्वी समान सामाचारीवाले स्व वसति में आए साध्वी को, निवास यानि कि रहने की जगह होने के बाद भी स्थान यानि कि ठहरने के लिए जगह न दे, न दिलाए या न देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२३३ - १२३४] जो साधु-साध्वी माले पर से ( माला - ऊपर हो, भूमिगृह में हो या मँच पर से उतारा हुआ), बड़ी कोठी में से, मिट्टी आदि मल्हम से बँध किया ढक्कन खोलकर लाया गया अशन, पान, खादिम, स्वादिमरूप आहार ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२३५-१२३८] जो साधु-साध्वी सचित्त पृथ्वी, पानी, अग्नि या वनस्पति पर (या साथ में) प्रतिष्ठित किए हुए या रखे हुए अशन, पान, खादिम, स्वादिम समान आहार ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले को अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२३९] जो साधु-साध्वी अति उष्ण ऐसे अशन आदि आहार कि जो मुख से वायु से - सूर्प यानि किसी पात्र विशेष से हिलाकर, विंझणा या पंखे के द्वारा, घुमा-फिराकर, पत्तापत्ते का टुकड़ा, शाखा शाखा का टुकड़ा - मोरपिंच्छ या मोरपिंच्छ का विंझन, वस्त्र या वस्त्र का टुकड़ा या हाथ से हवा फेंककर फूंककर ठंड़े किए हो उसे दे (संक्षेप में कहा जाए तो अति उष्ण ऐसे अशन आदि उपर कहे गए किसी तरह ठंड़े किए गए हो वो लाकर कोई वहोरावे तब जो साधु-साध्वी ) उसे ग्रहण करे -करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । [१२४०] जो साधु-साध्वी आँटा, पीष्टोदक, चावल, घड़ा, तल, तुप, जव, ठंड़ा किया गया लोहा या कांजी उसमें से किसी धोवाण या शुद्ध उष्ण पानी कि जो तत्काल धोया हुआ यानि कि तैयार किया गया हो, जिसमें से खट्टापन गया न हो, अपरिणत या पूरी तरह अचित न हुआ हो, पूरी तरह अचित नहीं लेकिन मिश्र हो कि जिसके वर्ण आदि स्वभाव बदला न हो ऐसा पानी ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२४१] जो साधु (साध्वी) अपने शरीर लक्षण आदि को आचार्य पद के योग्य बताए यानि आचार्य पद के लिए योग्य ऐसे अपने शरीर आदि का वर्णन करके मैं भी आचार्य बनूँगा वैसा कहे, कहलाए या कहनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१२४२-१२४६] जो साधु-साध्वी वितत, तन, धन और झुसिर उस चार तरह के वांजित्र के शब्द को कान से सुनने की ईच्छा से मन में संकल्प करे, दुसरों को वैसा संकल्प करने के लिए प्रेरित करे या वैसा संकल्प करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । - भेरी, ढोल, ढोल जैसा वाद्य, मृदंग, (बारह वाद्य साथ बज रहे हो वैसा वाद्य) नंदि, झालर, वल्लरी, डमरु, पुरुषल नाम का वाद्य, सदुक नाम का वाद्य, प्रदेश, गोलुंकी, गोकल इसतरह के वितत शब्द करनेवाले वाद्य, सीतार, विपंची, तूण, वव्वीस, वीणातिक, तुंबवीणा,
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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