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________________ ८६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है, कोई नहीं । भगवन् ! जो उत्पन्न होता है, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण करता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में भी समझना । भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर सीधा तेजस्कायिक, वायुकायिक, विकलेन्द्रियो में उत्पन्न होता है ? गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है | अवशिष्ट पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक आदि में असुरकुमार की उत्पत्ति आदि नैरयिक अनुसार समझना । इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना । ५०२] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से उद्धर्तन कर सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस प्रकार स्तनितकुमारों तक समझ लेना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से निकल कर सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है, कोई नहीं । जो उत्पन्न होता है, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय तक में कहना। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों में नैरयिक के समान कहना | वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में निषेध करना । पृथ्वीकायिक के समान अप्कायिक एवं वनस्पतिकायिक में भी कहना । भगवन् ! तेजस्कायिक जीव, तेजस्कायिकों में से उद्धृत्त होकर क्या सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक उत्पत्ति का निषेध समझना । पृथ्वीकायिक, यावत् चतुरिन्द्रियों में कोई (तेजस्कायिक) उत्पन्न होता है और कोई नहीं । भगवन् ! जो तेजस्कायिक उत्पन्न होता है, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण कर सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । तेजस्कायिक जीव, तेजस्कायिकों में से निकल कर सीधा पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता। जो उत्पन्न होता है, उनमें से कोई धर्मश्रवण प्राप्त करता है, कोई नहीं । जो केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है, बोधि को समझ नहीं पाता । तेजस्कायिक जीव, इन्हीं में से निकल कर सीधा मनुष्य तथा वाणव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकों में उत्पन्न नहीं होता । तेजस्कायिक की अनन्तर उत्पत्ति के समान वायुकायिक में भी समझ लेना । [५०३] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रिय जीवों में से निकल कर सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक के समान ही द्वीन्द्रिय जीवों में भी समझना । विशेष यह कि वे मनःपर्यावज्ञान तक प्राप्त कर सकते हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव भी यावत मनःपर्यायज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । जो मनःपयोयज्ञान प्राप्त करता है, वह केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । [५०४] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यश्च पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में से उद्धृत्त होकर सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है और कोई नहीं । जो उत्पन्न होता है, उनमें से कोई धर्मश्रवण प्राप्त करता है और कोई नहीं । जो केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है, उनमें से कोई केवलबोधि समझता है, कोई नहीं । जो केवलबोधि समझता है, वह श्रद्धा, प्रतीति और रुचि भी करता है । जो श्रद्धा-प्रतीति-रुचि करता है, वह आभिनिबोधिक यावत् अवधिज्ञान भी प्राप्त कर सकता है । जो आभिनिबोधिक यावत् अवधिज्ञान प्राप्त करता है, वह शील से लेकर पौषधोपवास तक अंगीकार नहीं कर सकता ।
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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