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________________ प्रज्ञापना- २०/-/५०४ इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों में कहना । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति के समान समझना । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों और मनुष्यों में नैरयिक के समान जानो । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में नैरयिकों के समान जानना । इसी प्रकार मनुष्य को भी जानो । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक असुरकुमार के समान है । ८७ [५०५ ] भगवन् ! (क्या) रत्नप्रभापृथ्वी का नारक रत्नप्रभापृथ्वी से निकल कर सीधा तीर्थंकरत्व प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई प्राप्त करता है, कोई नहीं क्योंकी - गौतम ! जिस रत्नप्रभापृथ्वी के नारक ने तीर्थंकर नाम - गोत्र कर्म बद्ध किया है, स्पृष्ट, निधत्त, प्रस्थापित, निविष्ट और अभिनिविष्ट किया है, अभिसमन्वागत है, उदीर्ण है, उपशान्त नहीं हुआ है, वह उद्वृत्त होकर तीर्थंकरत्व प्राप्त कर लेता है, किन्तु जिसे तीर्थंकर नाम - गोत्र कर्म बद्ध यावत् उदीर्ण नहीं होता, वह तीर्थंकरत्व प्राप्त नहीं करता । इसी प्रकार यावत् वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में समझना । भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी का नारक पंकप्रभापृथ्वी से निकल कर क्या तीर्थंकरत्व प्राप्त कर लेता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह अन्तक्रिया कर सकता है । धूमप्रभा पृथ्वी नैरयिक सम्बन्ध में यह अर्थ समर्थ नहीं है । किन्तु वह विरति प्राप्त कर सकता है । तमः पृथ्वी नारक में भी यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह विरताविरति पा सकता है । अधः सप्तमपृथ्वी भी नैरयिक तीर्थंकरत्व नहीं पाता किन्तु वह सम्यक्त्व पा सकता है । असुरकुमार भी तीर्थंकरत्व नहीं पाता, किन्तु वह अन्तक्रिया कर सकता है । इसी प्रकार अप्कायिक तक जानना । भगवन् ! तेजस्कायिक जीव तेजस्कायिकों में से उद्धृत्त होकर अनंतर उत्पन्न हो कर क्या तीर्थंकरत्व प्राप्त कर सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, केवलप्ररूपित धर्म का श्रवण पा सकता है । इसी प्रकार वायुकायिक के विषय में भी समझ लेना । वनस्पतिकायिक विषय में पृच्छा ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह अन्तक्रिया कर सकता है । द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय ? वे तीर्थंकरत्व नहीं पाता किन्तु मनः पर्यवज्ञान का उपार्जन कर सकते हैं । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्कदेव ? तीर्थंकरत्व प्राप्त नहीं करते, किन्तु अन्तक्रिया कर सकते हैं । भगवन् ! सौधर्मकल्प का देव ? गौतम ! कोई तीर्थंकरत्व प्राप्त करता है और कोई नहीं, इत्यादि रत्नप्रभापृथ्वी के नारक के समान जानना । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्ध विमान के देव तक समझना । [५०६] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का नैरयिक उद्वर्त्तन करके क्या चक्रवर्तीपद प्राप्त कर सकता है ? गौतम ! कोई प्राप्त करता है, कोई नहीं क्योंकी - गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों को तीर्थंकरत्व प्राप्त होने न होने के कारणों के समान चक्रपर्तीपद प्राप्त होना, न होना समझना । शर्कराप्रभापृथ्वी का नारक उद्वर्त्तन करके सीधा चक्रवर्तीपद पा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक समझ लेना । तिर्यञ्चयोनिको और मनुष्यों से निकल कर सीधे चक्रवर्ती पद प्राप्त नहीं कर सकते । भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव अपने-अपने भवों से च्यवन कर इनमें से कोई चक्रवर्तीपद प्राप्त कर सकता है, कोई नहीं । इसी प्रकार बलदेवत्व के विषय में भी समझना । विशेष यह कि शर्कराप्रभापृथ्वी का
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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