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________________ प्रज्ञापना-२०/-/४९९ छह, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च दस, मनुष्य दस, मनुष्यनियाँ बीस, वाणव्यन्तर देव दस, वाणव्यन्तर देवियाँ पांच, ज्योतिष्क देव दस, ज्योतिष्क देवियाँ बीस, वैमानिक देव एक सौ साठ, वैमानिक देवियाँ बीस अन्तक्रिया करती हैं । [५००] भगवन् ! नारक जीव, नारकों में से उद्धर्तन कर क्या (सीधा) नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नारक जीव नारकों में से निकल कर क्या असुरकुमारों में उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी तरह निरन्तर यावत् चतुरिन्द्रिय में उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! नारक जीव नारकों में से उद्धर्तन कर अन्तर रहित पंचेन्द्रियतिर्यञ्च में उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ! कोई होता है और कोई नहीं होता । भगवन् ! तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होनेवाला नारक क्या केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण कर सकता है ? गौतम ! कोई कर सकता है और कोई नहीं । भगवन् ! वह जो केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण कर सकता है, क्या वह केवल बोधि को समझता है ? गौतम ! कोई समझता है, कोई नहीं समझता । भगवन् ! जो केवलबोधि को समझे क्या वह श्रद्धा, प्रतीति तथा रुचि करता है ? हाँ गौतम ! करता है। भगवन् ! जो श्रद्धा आदि करता है (क्या) वह आभिनिबोधिक और श्रुतज्ञान उपार्जित करता है ? हाँ गौतम ! करता है ।। भगवन् ! जो आभिनिबोधिक एवं श्रुतज्ञान प्राप्त करता है, (क्या) वह शील, व्रत, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान अथवा पौषधोपवास अंगीकार करने में समर्थ होता है ? गौतम ! कोई होता है, कोई नहीं होता । भगवन् ! जो शील यावत् पौषधोपवास अंगीकार करता है (क्या) वह अवधिज्ञान को उपार्जित कर सकता है ? गौतम ! कोई कर सकता है (और) कोई नहीं । भगवन् ! जो अवधिज्ञान उपार्जित करता है, (क्या) वह प्रव्रजित होने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नारक, नारकों में से उद्धर्तन कर क्या सीधा मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है और कोई नहीं । भगवन् ! जो उत्पन्न होता है, (क्या) वह केवलि-प्रज्ञप्त धर्मश्रवण पाता है ? गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में धर्मश्रवण से अवधिज्ञान तक कहा है, वैसे ही यहाँ कहना । विशेष यह की जो (मनुष्य) अवधिज्ञान पाता है, उनमें से कोई प्रव्रजित होता है और कोई नहीं होता । भगवन् ! जो प्रव्रजित होने में समर्थ है, (क्या) वह मनःपर्यवज्ञान पा सकता है ? गौतम ! कोई पा सकता है और कोई नहीं । भगवन् ! जो मनःपर्यवज्ञान पाता है (क्या) वह केवलज्ञान को पा सकता है ? गौतम ! कोई पा सकता है (और) कोई नहीं | भगवन ! जो केवलज्ञान को पा लेता है, (क्या) वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो यावत् सब दुःखों का अन्त कर सकता है ? हा गौतम ! ऐसा ही है । . भगवन् ! नारक जीव, नारकों में से निकल कर वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [५०१] भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक समझ लेना । भगवन् ! (क्या) असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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