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________________ ६८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पत्ते के समान लाल, मृदु और कोमल होते हैं । उनकी नाक कनेर की कली की तरह सीधी, उन्नत, ऋजु और तीखी होती है । उनके नेत्र शरदऋतु के कमल और चन्द्रविकासी नीलकमल के विमुक्त पत्रदल के समान कुछ श्वेत, कुछ लाल और कुछ कालिमा लिये हुए और बीच में काली पुतलियों से अंकित होने से सुन्दर लगते हैं । उनके लोचन पश्मपुटयुक्त, चंचल, कान तक लम्बे और ईषत् रक्त होते हैं । उनकी भौहें कुछ नमे हुए धनुष की तरह टेढ़ी, सुन्दर, काली और मेघराजि के समान प्रमाणोपेत, लम्बी, सुजात, काली और स्निग्ध होती हैं । उनके कान मस्तक से कुछ लगे हुए और प्रमाणयुक्त होते हैं । उनकी गंडलेखा मांसल, चिकनी और रमणीय होती है । उनका ललाट चौरस, प्रशस्त और समतल होता है, उनका मुख कार्तिकपूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह निर्मल और परिपूर्ण होता है । उनका मस्तक छत्र के समान उन्नत होता है । उनके बाल धुंघराले स्निग्ध और लम्बे होते हैं । वे बत्तीस लक्षणों को धारण करने वाली हैं १ छत्र, २ ध्वज, ३ युग, ४ स्तूप, ५ दामिनी, ६ कमण्डलु, ७ कलश, ८ वापी, ९ स्वस्तिक, १० पताका, ११ यव, १२ मत्स्य, १३ कुम्भ, १४ श्रेष्ठरथ, १५ मकर, १६ शुकस्थाल, १७ अंकुश, १८ अष्टापदवीचिचूतफलक, १९ सुप्रतिष्ठक स्थापनक, २० मयूर, २१ ८दाम, २२ अभिषेक, २३ तोरण, २४ मेदिनीपति, २५ समुद्र, २६ भवन, २७ प्रासाद, २८ दर्पण, २९ मनोज्ञ हाथी, ३० बैल, ३१ सिंह और ३२ चमर । वे एकोरुक द्वीप की स्त्रियां हंस के समान चाल वाली हैं । कोयल के समान मधुर वाणी और स्वर वाली, कमनीय और सबको प्रिय लगने वाली होती हैं । उनके शरीर में झुर्रिया नहीं पड़ती और बाल सफेद नहीं होते । वे व्यंग्य, वर्णविकार, व्याधि, दौर्भाग्य और शोक से मुक्त होती हैं । वे ऊँचाई में पुरुषों की अपेक्षा कुछ कम ऊँची होती हैं । वे स्वाभाविक श्रृंगार और श्रेष्ठ वेश वाली होती हैं । वे सुन्दर चाल, हास, बोलचाल, चेष्टा, विलास, संलाप में चतुर तथा योग्य उपचार-व्यवहार में कुशल होती हैं । उनके स्तन, जघन, मुख, हाथ, पाँव और नेत्र बहुत सुन्दर होते हैं । वे सुन्दर वर्ण वाली, लावण्य वाली, यौवन वाली और विलासयुक्त होती हैं । नंदनवन में विचरण करने वाली अप्सराओं की तरह वे आश्चर्य से दर्शनीय हैं । वे दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं । ___ हे भगवन् ! उन स्त्रियों को कितने काल के अन्तर से आहार की अभिलाषा होती है ? गौतम ! एक दिन छोड़कर । हे भगवन् ! वे मनुष्य कैसा आहार करते हैं ? हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य पृथ्वी, पुष्प और फलों का आहार करते हैं । उस पृथ्वी का स्वाद जैसे गुड, खांड, शक्कर, मिश्री, कमलकन्द पर्पटमोदक, पुष्पविशेष से बनी शक्कर, कमलविशेष से बनी शक्कर, अकोशिता, विजया, महाविजया, आदर्शोपमा अनोपमा का स्वाद होता है वैसा उस मिट्टी का स्वाद है । अथवा चार बार परिणत एवं चतुःस्थान परिणत गाय का दूध जो गुड, शक्कर, मिश्री मिलाया हुआ, मंदाग्नि पर पकाया गया तथा शुभवर्ण, शुभगंध, शुभरस और शुभस्पर्श से युक्त हो, ऐसे गोक्षीर जैसा वह स्वाद होता है, उस पृथ्वी का स्वाद इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मनोज्ञतर होता है । वहाँके पुष्पों और फलों का स्वाद, जैसे चातुरंतचक्रवर्ती का भोजन, जो लाख गायों से निष्पन्न होता है, जो श्रेष्ठ वर्ण से, गंध से, रस से और स्पर्श से युक्त है, आस्वादन के योग्य है, पुनः पुनः आस्वादन योग्य है, जो दीपनीय है, वृंहणीय है, दर्पणीय है, मदनीय है
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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