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________________ जीवाजीवाभिगम-३/मनुष्य/१४५ ६७ विनीत, अल्प इच्छा वाले, संचय-संग्रह न करने वाले, क्रूर परिणामों से रहित, वृक्षों की शाखाओं के अन्दर रहने वाले तथा इच्छानुसार विचरण करने वाले वे एकोरुकद्वीप के मनुष्य हैं । हे भगवन् ! उन मनुष्यों को कितने काल के अन्तर से आहार अभिलाषा होती है ? हे गौतम ! चतुर्थभक्त अर्थात् एक दिन छोड़कर होती है । हे भगवन् ! इस एकोरुक-द्वीप की स्त्रियों का आकार-प्रकार-भाव कैसा कहा गया है ? गौतम ! वे स्त्रियां श्रेष्ठ अवयवों द्वारा सर्वांगसुन्दर हैं, महिलाओं के श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं । चरण अत्यन्त विकसित पद्मकमल की तरह सुकोमल और कछुए की तरह उन्नत हैं । पांवों की अंगुलियां सीधी, कोमल, स्थूल, निरन्तर, पुष्ट और मिली हुई हैं । नख उन्नत, रति देने वाले, पतले, ताम्र जैसे रक्त, स्वच्छ एवं स्निग्ध हैं । उनकी पिण्डलियां रोम रहित, गोल, सुन्दर, संस्थित, उत्कृष्ट शुभलक्षणवाली और प्रीतिकर होती हैं । घुटने सुनिर्मित, सुगूढ और सुबद्धसंधि वाले हैं, उनकी जंघाएँ कदली के स्तम्भ से भी अधिक सुन्दर, व्रणादि रहित, सुकोमल, मृदु, कोमल, पास-पास, समान प्रमाणवाली, मिली हुई, सुजात, गोल, मोटी एवं निरन्तर हैं, उनका नितम्बभाग अष्टापद द्यूत के पट्ट के आकार का, शुभ, विस्तीर्ण और मोटा है, मुखप्रमाण से दूना, विशाल, मांसल एवं सुबद्ध उनका जघनप्रदेश है, उनका पेट वज्र की तरह सुशोभित, शुभ लक्षणोंवाला और पतला होता है, कमर त्रिवली से युक्त, पतली और लचीली होती है, उनकी रोमराजि सरल, सम, मिली हुई, जन्मजात पतली, काली, स्निग्ध, सुहावनी, सुन्दर, सुविभक्त, सुजात, कांत, शोबायुक्त, रुचिर और रमणीय होती है । नाभि गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त, तरंग भंगुर सूर्य की किरणों से ताजे विकसित हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है । __उनकी कुक्षि उग्रता रहित, प्रशस्त और स्थूल है । उनके पार्श्व कुछ झुके हुए हैं, प्रमाणोपेत हैं, सुन्दर हैं, जन्मजात सुन्दर हैं, परिमितमात्रायुक्त स्थूल और आनन्द देने वाले हैं। उनका शरीर इतना मांसल होता है कि उसमें पीठ की हड्डी और पसलियां दिखाई नहीं देतीं। उनका शरीर सोने जैसी कान्तिवाला, निर्मल, जन्मजात सुन्दर और ज्वरादि उपद्रवों से रहित होता है । उनके पयोधर सोने के कलश के समान प्रमाणोपेत, दोनों बराबर मिले हुए, सुजात और सुन्दर हैं, उनके चूचुक उन स्तनों पर मुकुट के समान लगते हैं । उनके दोनों स्तन गोल उन्नत और आकार-प्रकार से प्रीतिकारी होते हैं । उनकी दोनों बाहु भुजंग की तरह क्रमशः नीचे की ओर पतली गोपुच्छ की तरह गोल, आपस में समान, अपनी-अपनी संधियों से सटी हुई, नम्र और अति आदेय तथा सुन्दर होती हैं । उनके नख ताम्रवर्ण के होते हैं । इनका पंजा मांसल होता है, उनकी अंगुलियां पुष्ट कोमल और श्रेष्ठ होती हैं । उनके हाथ की रेखायें स्निग्ध होती हैं । उनके हाथ में सूर्य, चंद्र, शंख-चक्र-स्वस्तिक की अलग-अलग और सुविरचित रेखाएँ होती हैं । उनके कक्ष और वस्ति पीन और उन्नत होता है । उनके गाल भरे-भरे होते हैं, उनकी गर्दन चार अंगुल प्रमाण और श्रेष्ठ शंख की तरह होती है । उनकी ठुड्डी मांसल, सुन्दर आकार की तथा शुभ होती है । उनका नीचे का होठ दाडिम के फूल की तरह लाल और प्रकाशमान, पुष्ट और कुछ-कुछ वलित होने से अच्छा लगता है । उनका ऊपर का होठ सुन्दर होता है । उनके दांत दही, जलकण, चन्द्र, कुंद, वासंतीकली के समान सफेद और छेदविहीन होते हैं, उनका तालु और जीभ लाल कमल के
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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