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________________ २३० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, तथा वर्णादि से षट्स्थानपतित है, आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों से तुल्य है, श्रुतज्ञान तथा चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों को भी कहना । विशेष यह कि स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तीन ज्ञान, तीन दर्शन तथा स्वस्थान में तुल्य है, शेष सब में षट्स्थानपतित है । मध्यम आभिनिबोधिक ज्ञानी तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों को ऐसे ही समझना । विशेष यह कि स्थिति से चतुः स्थानपतित है; तथा स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार श्रुतज्ञानी तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय में भी कहना । जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकीजघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है; स्थिति से त्रिस्थानपतित है तथा वर्णादि और आभिनिबोधिक तथा श्रुतज्ञान से षट्स्थानपतित है । अवधिज्ञान से तुल्य है । ( इसमें ) अज्ञान नहीं कहना । चक्षुदर्शनपर्यायों और अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक को पर्याय भी कहना । मध्यम अवधिज्ञानी को भी ऐसे ही जानना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । आभिनिबोधिकज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय के समान मति और श्रुत- अज्ञानी जानना, अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च के समान विभंगज्ञानी को जानना । चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी की आभिनिबोधिकज्ञानी की तरह है । अवधिदर्शनी अवधिज्ञानी की तरह है । (विशेष यह कि ) ज्ञान और अज्ञान साथ नहीं होते । [३२०] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी - जघन्य अवगाहनावाले मनुष्य द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से त्रस्थानपतित है, तथा वर्ण आदि से, एवं तीन ज्ञान, दो अज्ञान और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्थिति से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो असंख्यात भागहीन होता है, यदि अधिक हो तो असंख्यातभाग अधिक होता है । उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन होते हैं । अजघन्य - अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले मनुष्यों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि अवगाहना और स्थिति से चतुः स्थानपतित है, तथा आदि के चार ज्ञानों से पट्स्थानपतित है, केवलज्ञान से तुल्य है, तथा तीन अज्ञान और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है, केवलदर्शन से तुल्य है । जघन्य स्थितिवाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्य स्थिति वाले मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, तथा वर्णादि, दो अज्ञानों और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्ट स्थितिवाले मनुष्यों में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन हैं । मध्यमस्थिति वाले मनुष्यों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्थिति अवगाहना, तथा आदि के चार ज्ञानों एवं तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से पट्स्थानपतित है तथा केवलज्ञान और केवलदर्शन से तुल्य है । जघन्यगुण काले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्यगुण काले मनुष्य द्रव्य
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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