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________________ प्रज्ञापना-५/-/३२० २३१ और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है; तथा अवशिष्ट वर्णादि, चार ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है और केवलज्ञान-केवलदर्शन से तुल्य है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले मनुष्यों में भी समझना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण काले मनुष्यों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं । इसी प्रकार शेष वर्णादि वाले मनुष्यों को कहना ।। जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्यों के अनन्तपर्याय हैं । क्योंकी-जघन्य आभिनिबोधिक-ज्ञानी मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य हैं, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, तथा वर्णादि से षट्स्थानपतित है, तथा आभिनिबोधिकज्ञान से तुल्य है, किन्तु श्रुतज्ञान और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी में जानना । विशेष यह कि वह आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों से तुल्य है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा तीन ज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । अजघन्य-अनुत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्यों में ऐसे ही कहना । विशेष यह कि स्थिति से चतुःस्थानपतित हैं, तथा स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं । इसी प्रकार श्रुतज्ञानी में भी जानना । जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्णादि, एवं दो ज्ञानों से षट्स्थानपतित है, अवधिज्ञान से तुल्य है, मनःपर्यवज्ञान और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी में भी कहना । इसी प्रकार मध्यम अवधिज्ञानी मनुष्यों में भी कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में वह षट्स्थानपतित है। अवधिज्ञानी के समान मनःपर्यायज्ञानी में कहना । विशेष यह कि अवगाहना की अपेक्षा से (वह) त्रिस्थानपतित है । आभिनिबोधिकज्ञानियों के समान मति और श्रुत-अज्ञानी में कहना । अवधिज्ञानी के समान विभंगज्ञानी (मनुष्यों) को भी कहना । चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी मनुष्यों आभिनिबोधिकज्ञानी के समान है. । अवधिदर्शनी को अवधिज्ञानी मनुष्यों के समान समझना । __ केवलज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-केवलज्ञानी मनुष्य द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण आदि से पट्स्थानपतित है, एवं केवलज्ञान और केवलदर्शन से तुल्य है । केवलज्ञानी के समान केवलदर्शनी में भी कहना । [३२१] वाणव्यन्तर देवों में असुरकुमारों के समान जानना । ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों में भी इसी प्रकार जानना । विशेष यह कि वे स्वस्थान में स्थिति से त्रिस्थानपतित हैं। [३२२] भगवन् ! अजीवपर्याय कितने प्रकार के ? गौतम ! दो प्रकार के, रूपी अजीव पर्याय और अरूपी अजीव पर्याय । भगवन् ! अरूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दस । (१) धर्मास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय का देश, (३) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (४) अधर्मास्तिकाय, (५) अधर्मास्तिकाय का देश, (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (७) आकाशास्तिकाय, (८) आकाशास्तिकाय का देश, (९) आकाशास्तिकाय के प्रदेश और (१०) अद्धासमय के पर्याय ।
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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