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________________ प्रज्ञापना-५/-/३१८ २२९ काले द्वीन्द्रियों में कहना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण काले द्वीन्द्रिय जीवों को इसी प्रकार (कहना) विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित होता है । इसी तरह शेष वर्ण आदि के विषय में भी जानना । ___ जघन्य-आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी द्वीन्द्रिय द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, वर्ण आदि गंध से षट्स्थानपतित है । आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है; श्रुतज्ञान तथा अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी द्वीन्द्रिय जीवों में कहना । मध्यम-आभिनिबोधिक ज्ञानी को भी ऐसा ही कहना किन्तु वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार श्रुतज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, मति-अज्ञानी और अचक्षुर्दर्शनी द्वीन्द्रिय जीवों में कहना । विशेषता यह है कि ज्ञान और अज्ञान साथ नहीं होते। जहाँ दर्शन होता है, वहाँ ज्ञान भी हो सकते हैं और अज्ञान भी । द्वीन्द्रिय के समान त्रीन्द्रिय के पर्याय-विषय में भी कहना । चतुरिन्द्रिय जीवों में भी यही कहना । अन्तर केवल इतना है कि इनके चक्षुदर्शन अधिक है । [३१९] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच द्रव्य, प्रदेशों, और अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, दो ज्ञानों, अज्ञानों और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्ट अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों को भी ऐसे ही कहना, विशेषता इतनी कि तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से पट्स्थानपतित है । इसी प्रकार अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहनावाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों को कहना विशेष यह कि ये अवगाहना तथा स्थिति से चतुःस्थानपतित हैं । जघन्य स्थितिवाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्यस्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च द्रव्य और प्रदेशों तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, तथा वर्ण आदि दो अज्ञान एवं दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्टस्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का कथन भी ऐसे ही करना । विशेष यह है कि इनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शनों जानना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थितिवाले को भी ऐसा ही जानना । विशेष यह कि स्थिति से (यह) चतुःस्थानपतित हैं, तथा इनमें तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और तीन दर्शनों की भी प्ररूपणा करना । जघन्यगुणकृष्ण पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्यगुण काले पंचेन्द्रियतिर्यश्च द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और वर्णादि स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, शेष वर्ण तथा तीन ज्ञान, तीन अज्ञान एवं तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले में भी समझना। अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण काले में भी इसी प्रकार कहना विशेष यह है कि वे स्वस्थान में भी षट्स्थानपतित हैं । इस प्रकार शेष वर्णादि (युक्त तिर्यञ्च में कहना ।) जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों के अनन्त पर्याय कहे हैं । क्योंकी-जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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