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________________ २२८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अज्ञानों से एवं अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों में भी जानना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहना वाले में भी ऐसा ही समझना । विशेष यह कि वह अवगाहना से भी चतुःस्थानपतित हैं । जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक के अनन्तपर्याय हैं । क्योंकी-जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, तथा (पूर्ववत) वर्णादि से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले में भी जानना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थितिवाले में इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि वे स्वस्थान में त्रिस्थानपतित हैं । जघन्यगुणकाले पृथ्वीकायिक के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्यगुणकाले पृथ्वीकायिक से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना से चतुःस्थान पतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है; काले वर्ण से तुल्य है; तथा अवशिष्ट वर्ण आदि एवं दो अज्ञानों और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले में भी कहना । मध्यम गुणकाले में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार पांच वर्णों, दो गन्धों, पांच रसों और आठ स्पर्शों में कहना । __ भगवन् ! जघन्य मति-अज्ञानी पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त क्योंकी-जघन्य मति-अज्ञानी पृथ्वीकायिक द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है; तथा वर्ण आदि से षट्स्थानपतित है; मतिअज्ञान से तुल्य है; श्रुत-अज्ञान तथा अचक्षु-दर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टमति-अज्ञानी में जानना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट-मति-अज्ञानी में भी इसी प्रकार कहना, विशेष यह कि यह स्वस्थान में भी षट्स्थानपतित है । मति-अज्ञानी के समान श्रुत-अज्ञानी तथा अचक्षुदर्शनी को भी कहना । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना । [३१८] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी-जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीव, द्रव्य, प्रदेश तथा अवगाहना से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, वर्ण आदि दो ज्ञानों, दो अज्ञानों तथा अचक्षु-दर्शन के से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले को भी जानना । किन्तु उत्कृष्ट अवगाहनावाले में ज्ञान नहीं होता, इतना अन्तर है । यही अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहना वाले में भी कहना । विशेषता यह कि वे स्वस्थान में अवगाहना से चतःस्थानपतित है । जघन्य स्थितिवाले द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है; तथा वर्ण, आदि से, दो अज्ञानों एवं अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिवाले द्वीन्द्रियजीवों को भी कहना । विशेष यह है कि इनमें दो ज्ञान अधिक कहना । उत्कृष्ट स्थितिवाले द्वीन्द्रिय के समान मध्यम स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में भी कहना । अन्तर इतना ही है कि स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है । जघन्यगुण कृष्णवर्णवाले द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्यगुण काले द्वीन्द्रिय जीव द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, कृष्णवर्णपर्याय से तुल्य है, शेष वर्णादि, दो ज्ञान, दो अज्ञान एवं अचक्षुदर्शन पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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