SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिए । छठा दूत मथुरा नगरी भेजा । उससे कहा-तुम धर नामक राजा को हाथ जोड़कर यावत् कहना स्वयंवर में पधारिये । सातवाँ दूत राजगृह नगर भेजा । उससे कहा-तुम जरासिन्धु के पुत्र सहदेव राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिये । आठवाँ दूत कौण्डिन्य नगर भेजा । उससे कहा-तुम भीष्मक के पुत्र रुक्मी राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो । नौवाँ दूत विराटनगर भेजा । उससे कहा-तुम सौ भाइयों सहित कीचक राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो । दसवाँ दूत शेष ग्राम, आकर, नगर आदि में भेजा । उससे कहा-तुम वहाँ के अनेक सहस्त्र राजाओं को उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो । तत्पश्चात् वह दूत उसी प्रकार निकला और जहाँ ग्राम, आकार, नगर आदि थे वहाँ जाकर सब राजाओं को उसी प्रकार कहा-यावत् स्वयंवर में पधारो । तत्पश्चात् अनेक हजार राजाओं ने उस दूत से यह अर्थ-संदेश सुनकर और समझकर हृष्ट-तुष्ट होकर उस दूत का सत्कार-सम्मान करके उसे विदा किया । तत्पश्चात् आमंत्रित किए हुए वासुदेव आदि बहुसंख्यक हजारों राजाओं में से प्रत्येक ने स्नान किया । वे कवच धारण करके तैयार हुए और सजाए हुए श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए । फिर घोड़ों, हाथियों, रथों और बड़े-बड़े भटों के समूह के समूह रूप चतुरंगिणी सेना के साथ अपने-अपने नगरों से निकले । पंचाल जनपद की ओर गमन करने के लिए उद्यत हुए । उस समय द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर उनसे कहा-'देवानुप्रियो! तुम जाओ और कांपिल्यपुर नगर के बाहर गंगा नदी से न अधिक दूर और न अधिक समीप में, एक विशाल स्वयंवर-मंडप बनाओ, जो अनेक सैकड़ों स्तंभों से बना हो और जिसमें लीला करती हुई पुतलियाँ बनी हों । जो प्रसन्नताजनक, सुन्दर, दर्शनीय एवं अतीव रमणीक हो ।' उन कौटुम्बिक पुरुषों ने मंडप तैयार करके आज्ञा वापिस सौंपी । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । बुलाकर उनसे कहा'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही वासुदेव वगैरह बहुसंख्यक सहस्रों राजाओं के लिए आवास तैयार करो।' उन्होंने आवास तैयार करके आज्ञा वापिस लौटाई । तत्पश्चात् द्रुपद राजा वासुदेव प्रभृति बहुत से राजाओं का आगमन जानकर, प्रत्येक राजा का स्वागत करने के लिए हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर यावत् सुभटों के परिवार से परिवृत होकर अर्ध्य और पाद्य लेकर, सम्पूर्ण वृद्धि के साथ कांपिल्यपुर से बाहर निकला । जिधर वासुदेव आदि बहुसंख्यक हजारों राजा थे, उधर गया । उन वासुदेव प्रभृति का अर्ध्य और पाद्य से सत्कार-सम्मान किया । उन वासुदेव आदि को अलग-अलग आवास प्रदान किए । तत्पश्चात् वे वासुदेव प्रभृति नृपति अपने-अपने आवासों में पहुँचे । हाथियों के स्कंध से नीचे उतरे । सबने अपने-अपने पड़ाव डाले और आवासों में प्रविष्ट हुए । अपने-अपने आवासों में आसनों पर बैठे और शय्याओं पर सोये । बहुत-से गंधर्वो से गाने कराने लगे और नट नाटक करने लगे । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने काम्पिल्यपुर नगर में प्रवेश किया । विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन तैयार करवाया । फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और वह विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, सुरा, मद्य, मांस, सीधु और प्रसन्ना तथा प्रचुर पुष्प, वस्त्र, गंध, मालाएँ एवं अलंकार वासुदेव आदि हजारों
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy